पुरुषार्थ | Pursartha

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Pursartha by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर्व मा नई . रद मध्तावना ग्रन्थ-विषय-झालोचन यह सद-ग्रम्थ, अपने विषय को स्वत: अति स्पडता से प्रकड परत है | एक बार पढ़ने से ही सु सजवों को यह सुज्ञात होंगा । इस अर्थ के उपक्रम और उपसंहार को देखने से, तथा २४४--२५० पृष्ठों पर लिखित,” “कुछ निजसस्बन्धी, कुछ शा्थविषयक, निवेदन” शीषक वाली रिप्यणी से भी, झन्थकार आर अ्रस्थ के सम्बन्ध की बहुत सी ज्ञातब्य बातें विदित होंगी । यहाँ कतिपय विशेष अवधेय विषयों पर ही पाठकों का ध्यान आकृट्ट करना चाहता हूँ, वह भी बहुत संक्षेप से । ग्रत्थप्रणयन का प्रयोजन श्रद्धय भगवान्‌ दास जी के अन्थ निर्माण का प्रव्तेक हेतु लोक-सेवा साव ही होता है; भौर प्राय: भाप के ग्रन्थों का 'उपक्रम, किसी न किसी व्याख्यान से होता हैं, जो किसी विशेष अवसर पर, किन्दीं सज्नों के अनुरोध वा सूचना से किया गया | इस अन्थ के अध्यायों के आरम्भ में जो टिप्पणियाँ छिख्डी हैं, उन से इन ठोनों बातों का संकेत स्पष्ट है ।* विचार पद्धति यद्यपि अध्यात्सविंद्‌ अन्थकार की सदसदुविवेकिनी बुद्धि मे विचार की स्वतन्त्रता है; तथापि आप, सुख्यत:, एकचाक्यता-साघक सीमाँसक _ विचार-पद्धति से ही अ्न्थ लिखते हैं; और दब्दार्थ के निवंचन के छिये नैरुक्त पद्धति का भी -बहुघा प्रयोग करते हैं; तथा शास्त्रार्थ की स्पष्टता के छिये, वस्तूपस्थापन से, ऐतिहासिक विमद-पद्धति की भी सहायता छेते हैं । दाब्द और जर्थ को 'तुलाशत इव' अच्छी तरह जाँच कर, यथार्थ प्रयोग . करने मे तो आप नितान्त कुशल हैं । संस्कृत तद्भव तत्सम शब्दों के साथ तुल्याथेक अँग्रेज़ी, फ़ारसी, भादि शब्दों को भी लिख देने से विभिन्‍्त-भाषा-भाषी बहुजन-समाज को कितना लाभ होने १ यह प्रथम संस्करण के अंक हैं; श्रब इस नये संस्करण मे यह. टिप्पणी, 'इस द्वितीय संस्करण का प्राककथन” मे शामिल कर दी गई है । . २ इस नये संस्करण मे, भूल से ये टिप्पणियाँ कभी अध्याय के अन्त में छाप दी गईं हैं, कभी बिल्कुल छूट गई हैं।




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