बूढ़ा बर | Budha Bar

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Budha Bar by बाबू ब्रजनन्दन सहाय - Babu Brajanandan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है. हर पृ गया या ने गया तेरे बाप का कया ? प्राजी, बदमाश ! दर हो यहां से । ( नेपथ्य में ) नर प्रेत ! इस सन्ध्या में दो भूखे बाहाण को फिशित अन्नदान नहीं कर सका ? चलो भाई: किसी दूसरे दरवाज़े पर यलो $ व०--राममणि बहुत सन्तुष्ट हुई है, कनक बाबू को जो हमने फमीन दी उस से सभी सम्तुष्ठ हुए हैं । अब जो कनक बाबू हम को सम्तुष्ट कर सकें तब तो ठीक, नहीं तो उन के घर दुच्जार में अाश लगा देंगे । कनक ऐसा झादगी नहीं है; शक कनिया अवश्य ठहरा ही देगा, उस को: कितनी क्षमता हे-कितना मान है । उसी के प्रभाव से तो ञाज बाघ घर बकरी एकही घाट में पानी यीती है ( दरवाजे में घका ) ठक ! ठक ! रात- दिन ठकठक !!! ( पुनः झावाज़ ) फिर थी ठक- ठक !! हाय ! ठकठक करता ही जाता है ( पुनः खावाज़ ) कौन हैं रे ? बोलता क्यों नहीं ? केवल ठकठक क्यों कर रहा है ? ( पुनः अआधात ) किवाड़ तोड़ देगा कया ? बोलता क्यों नहीं ? राममणि को पुकारें क्या? सासे सब जहन्नुम गये, रामता बदजात तो मेरा परम शरद है; पाजी कों केसे जवाब दे कुछ उपाय नहीं सूफता ।




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