घृणामयी | Ghirinamayi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
187
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चुणामयी । १०
वह कुर्सीमें बैठकर कंहानी पढ़नेमें व्यस्त रहता तो उसे उठाकर और
बातोंमें भुलाकर कुर्सीकों चुपकेसे पीछे खिसका देती और तब उसे
बैठनेके लिये कहती । वह ज्योंही बैठने जाता सोंही धड़ामसे ज़मीनपर
गिर पड़ता | मैं खिलखिलाकर हँस पड़ती । वह नकियाता हुआ, बड़-
बड़ाता हुआ उठ बैठता और फिर मुस्कुराकर फ्रेंच भाषामें गाली देते डुए
कहता-- ' औफों तेरिन्ठ 1” ( छ्त3ि0£ (पोज )* हम लोग
अब फ्रांसीसी भाषा सीखने ठगे थे । कभी ऐसा होता कि मैं राजूको
बूँसोंसे मारती और राजू भी उन व्रूँसोंका जवाब पूँसोंमें देता । इस पूँसे
बाज़ीको देखकर छीला रोती हुई अम्मौके पास जाती और हमारी शिका-
यत करके उन्हें बुला छाती । एक दिन इसी तरह हम दोनोंकी पूँसे-
बाजी चल रही थी । छीछाकी जासूसीके फलस्वरूप अम्मों दबे पाँव आ
खड़ी हुई । अम्मैको देखकर हम छोग बाघकी तरह डरते थे । हम दोनों
सन रह गए । उअम्मों कुछ मिनटों तक अँखें छाल किए हुए चुपचाप
खड़ी रहीं । फिर बोरली--*' शाबाश उजा, दाबाश ! वाह रज्जू, तू भी
बहुत होशियार हो गया है ! यही तुम छोगोंकी पड़ाई हो रही है । कहाँ
गई मादमाज़ेठ पावलोवना १ वह रौंड क्या यों ही दो सौ रुपए ढेती है
इधर इन छोकरे-छोकरियोंकी यह हालत है ! कोई देखनेवाला नहीं,
कोई सुननेत्राला नहीं । इनके काकाने इन्हें सिरपर चढ़ा ठिया है । जब
लकड़ीकी मारसे इन लोगोंकी हृड्डियाँ दुलत की जातीं, तब कहीं ये ठिकाने
आते ! उस गोरी रैंडिकी पाँचों घीमें तर हैं । कुछ मिहनत नहीं, कोई
काम नहीं । घूमती-फिरती है, मोटरमें सैर करती है, नाच-पार्टियोंमें
जाती है और हरामके दो सौ रुपए हर महीने बैंकमें जमा करती है ।”
+ बेजा बातें बकनेवाली बालिका ।
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