घृणामयी | Ghirinamayi

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Ghirinamayi by इलाचंद्र जोशी - Ilachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुणामयी । १० वह कुर्सीमें बैठकर कंहानी पढ़नेमें व्यस्त रहता तो उसे उठाकर और बातोंमें भुलाकर कुर्सीकों चुपकेसे पीछे खिसका देती और तब उसे बैठनेके लिये कहती । वह ज्योंही बैठने जाता सोंही धड़ामसे ज़मीनपर गिर पड़ता | मैं खिलखिलाकर हँस पड़ती । वह नकियाता हुआ, बड़- बड़ाता हुआ उठ बैठता और फिर मुस्कुराकर फ्रेंच भाषामें गाली देते डुए कहता-- ' औफों तेरिन्ठ 1” ( छ्त3ि0£ (पोज )* हम लोग अब फ्रांसीसी भाषा सीखने ठगे थे । कभी ऐसा होता कि मैं राजूको बूँसोंसे मारती और राजू भी उन व्रूँसोंका जवाब पूँसोंमें देता । इस पूँसे बाज़ीको देखकर छीला रोती हुई अम्मौके पास जाती और हमारी शिका- यत करके उन्हें बुला छाती । एक दिन इसी तरह हम दोनोंकी पूँसे- बाजी चल रही थी । छीछाकी जासूसीके फलस्वरूप अम्मों दबे पाँव आ खड़ी हुई । अम्मैको देखकर हम छोग बाघकी तरह डरते थे । हम दोनों सन रह गए । उअम्मों कुछ मिनटों तक अँखें छाल किए हुए चुपचाप खड़ी रहीं । फिर बोरली--*' शाबाश उजा, दाबाश ! वाह रज्जू, तू भी बहुत होशियार हो गया है ! यही तुम छोगोंकी पड़ाई हो रही है । कहाँ गई मादमाज़ेठ पावलोवना १ वह रौंड क्या यों ही दो सौ रुपए ढेती है इधर इन छोकरे-छोकरियोंकी यह हालत है ! कोई देखनेवाला नहीं, कोई सुननेत्राला नहीं । इनके काकाने इन्हें सिरपर चढ़ा ठिया है । जब लकड़ीकी मारसे इन लोगोंकी हृड्डियाँ दुलत की जातीं, तब कहीं ये ठिकाने आते ! उस गोरी रैंडिकी पाँचों घीमें तर हैं । कुछ मिहनत नहीं, कोई काम नहीं । घूमती-फिरती है, मोटरमें सैर करती है, नाच-पार्टियोंमें जाती है और हरामके दो सौ रुपए हर महीने बैंकमें जमा करती है ।” + बेजा बातें बकनेवाली बालिका ।




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