मोक्षमार्ग - प्रकाशक | Mokshmarg Prakashak

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Mokshmarg Prakashak  by शिरोमणि टोडरमल्ल - Shiromani Todarmall

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु धर्मके छोमी अन्य भाग उमसमसी देखि रागअंशके उदयतें करुणाबुद्धि होय तो तिनिकों धर्मोपदेश देते हैं । जे दीक्षापराहक हैं तिनकौं दीक्षा देते हैं जे अपने दोष प्रगट करे हैं तिनकौं प्रायश्चित्त विषिकरि शुद्ध करे हैं । ऐसें आचार अचरावनवाले आचाये तिनकौं हमारा नमस्कार होहु । बहुरि जे बहुत जैन- शाखनिके ज्ञाता होय संघविते पठन पाठनके अधिकारी भये हैं, बहुरि जे समस्त शाख्निका प्रयोजनथूत अर्थ जानि एकाअ होय अपने खरूपकों ध्यावे हैं । अर जो कदाचित्‌ कषाय अंझ- उदयतैं तहां उपयोग नाहीं थे है तो तिन झाखनिकों आप पढ़े हैं वा अन्य धर्मबुद्धीनिको पढ़ावे हैं । ऐसैं समीपवर्ती भव्यनिको अध्ययन करावनहारे उपाध्याय तिनिकीं हमारा नमस्कार होहु । बहुरि इन दोय पदवीधारक विना अन्य समस्त जे मुनिपदके धारक हैं बहुरि जे आत्मखभावकों साषे हैं । जेंसें अपना उपयोग परदव्यनिविषे इष्ट अनिष्टपनों मानि फसे नाहीं वा भागे नाहीं तैसें उपयोगको सधावे हैं । बहुरि बाद्यताके साधनभूत तपश्चरण आदि क्रियानिविषे प्रवर्ते हैं वा कदाचित्‌ भक्तिवंदनादि कायेनि- विषे प्रवर्ते हैं । ऐसे आत्मखभावके साधक साधु हैं तिनकौं हमारा नमस्कार दोहु । ऐसैं इन अरहंतादिकनिका खरूप है सो वीतराग विज्ञानमय है। तिसहदीकरि अरहंतादिक सुति योग्य महान भये हैं तातें जीव तत्त्वकरि तो सर्व जीव समान हैं: परंतु रागादिक विकारनिकरि वा ज्ञानकी हीनताकरि जीव निंदा योग्य हो हैं। बहुरि रागादिककी हीनताकरि वा. ज्ञानकी विशेषताकरि ख़ुति योग्य हो हैं । सो अरहंत सिद्धनिके तो संपूर्ण रागादिककी




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