मालती - माला | Malti Mala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माँ कं
पता नहीं क्या हे रहा है--बैचैनी सी मालूम पड़ रही है ।
ऐसा मुभ्े कभी किसी लड़की को देखकर नहीं हुआ है।
हजारों लड़कियाँ देखीं पर इसे देखकर न जाने क्या हो रहा है।”
'“्तुम तो बड़ी विचित्र हो । कल हो मैंने ठीक तुम्हारे जेसी
शक्ल की रत ट्राम में बैठी देखी थी तो क्या मैं उसे
तुम्हें समभकर बाते” करने लगता--श्ौर कहता कि तुम”
मेरी खरी हो--” नवलकिशोर की बात सुनकर वेदमती को
हँसी झा गई । वह बोली--'बात फ्ररते ते ठुक भी जाते--
अच्छी तरह” पर थाड़ी देर बाद उससे पुन: रट लगाई--““कह
दा--शंका मिटा दा--मेरी ही बेटी है। तुम पहचानते हुए
भी बन रहे हो” । नवलकिशोर के समझाने का वेदमती पर
कुछ भी असर नहीं हो रहा था--“'एक बार ता पुकार (लेने
दे बेटी ।” इसी बीच में विनोद माँ के पास खिसक श्राया
घार धीरे से बाला “माँ, इसकी शक्ल ता मुन्नी से मिलती
है--उमर का भी वही हिसाब है” । नवलकिशार बोतते
'बबेटा, उघर जाकर बैठो” । विनोद की समक में सारा
रहस्य झा गया। वेदमती बाली--'तुम्हें जरा भी ममता
नहीं है” पर वे शांत से बने बेठे रहे। माव-स्नेह के आगे
उनकी हार होने लगी । वेदमती की इच्छा खूब जोर
जार से राने की हुई। उसका कंठ रु धने लगा। वह
छिप छिपकर अपनी पुत्री की ओर देखने लगो झऔर सेचने
लगी--बेटो को पा लिया पर इससे ता न पाना भला था |
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