मालती - माला | Malti Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माँ कं पता नहीं क्या हे रहा है--बैचैनी सी मालूम पड़ रही है । ऐसा मुभ्े कभी किसी लड़की को देखकर नहीं हुआ है। हजारों लड़कियाँ देखीं पर इसे देखकर न जाने क्या हो रहा है।” '“्तुम तो बड़ी विचित्र हो । कल हो मैंने ठीक तुम्हारे जेसी शक्ल की रत ट्राम में बैठी देखी थी तो क्‍या मैं उसे तुम्हें समभकर बाते” करने लगता--श्ौर कहता कि तुम” मेरी खरी हो--” नवलकिशोर की बात सुनकर वेदमती को हँसी झा गई । वह बोली--'बात फ्ररते ते ठुक भी जाते-- अच्छी तरह” पर थाड़ी देर बाद उससे पुन: रट लगाई--““कह दा--शंका मिटा दा--मेरी ही बेटी है। तुम पहचानते हुए भी बन रहे हो” । नवलकिशोर के समझाने का वेदमती पर कुछ भी असर नहीं हो रहा था--“'एक बार ता पुकार (लेने दे बेटी ।” इसी बीच में विनोद माँ के पास खिसक श्राया घार धीरे से बाला “माँ, इसकी शक्ल ता मुन्नी से मिलती है--उमर का भी वही हिसाब है” । नवलकिशार बोतते 'बबेटा, उघर जाकर बैठो” । विनोद की समक में सारा रहस्य झा गया। वेदमती बाली--'तुम्हें जरा भी ममता नहीं है” पर वे शांत से बने बेठे रहे। माव-स्नेह के आगे उनकी हार होने लगी । वेदमती की इच्छा खूब जोर जार से राने की हुई। उसका कंठ रु धने लगा। वह छिप छिपकर अपनी पुत्री की ओर देखने लगो झऔर सेचने लगी--बेटो को पा लिया पर इससे ता न पाना भला था |




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