नव विधान | Nav Vidhaan

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Nav Vidhaan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ नव-विधान शेलेश का मिज़ाज यों ही गरम हो रहा था उस पर ये खुराफ़ात ख़यालात जो लड़के के मुँह से सुन पड़े तो झाग में घी पड़ गया । उसने ठोकर मारकर तीली वगैरह सब फेक दिया झ्रौर धमकाते हुए कहा--सीसते हैं सब वही कुसंस्कार की बातें सीखा करता है जा अपना पाठ पढ़ । इतनी साध का वच् आकाश-दीप टूट-फूट जाने से सामेन रुग्नासा हो गया--ँखों में झाँसू भर झाये । ऊपरी सब्ज़िल की किसी जगह से बेहद मीठी झ्ावाज़ में सुनाई पड़ा--बेटा सामेन कल बाज़ार से में इससे भी अच्छा झाकासी दिया तुम्हें मँगवा दूँगी । आओ मेरे पास चले झा । लड़का आँखें पांछता हुआ ऊपर चला गया । शैलेश खीभ उठा झ्ौर बिगड़ गया । किसी ओर न देखकर वह सीधा अपने पढ़ने के कमरे में घुस गया । उसी घड़ी चपरासी बुलाने की घण्टी टन्‌-टन्‌-टन्‌ करके बज उठी । मगर कोइ न बाला | शैलेश ने पुकारा--झब्दुल्ला अब्दुल्ला भी न आया | फिर पुकारा--गिरधारी णगिरधारी अबकी गिरधघारी के बदले बड्गाली नौकर गाल ने जाकर परदा हटाकर भीतर सिर बड़ाकर कहा--जी सरकार शैलेंश ने ज़ोर से डाँटकर कहा--जी सरकार ? सब साले क्या मर गये ? गोकुल--जी नहीं | न




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