शून्य की नाव | Sunya Ke Nav

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Sunya Ke Nav by रतन प्रकाश - Ratan Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ शुन्य की नाव के घेरे में वापस तो नहीं लौटा जा रहा हूं। यहाँ कोई अखबार पढ़ने की जरूरत नहीं है, न यहाँ रेडियो सुनने की जरूरत है, न एक-दूसरे से व्यर्थ की चातें करने की जरूरत है । तीन दिन के लिए विश्वाम ले लें अपनी सब आदतों से। यहाँ अगर पति ओर पत्नो साथ भाये हों तो एक-दूसरे को पति ओर पत्नी मानने की कोई जरूरत नहीं है । इन तीन दिनों के लिए छूट्टी ले लें. पत्नी होने से और पत्त होने से । इन तीन दिनों के लिए वह सारे भाव घर पर छोड़ आयें जो घर के घेरे में हमको कद रखते हैं, अन्यथा आप यहाँ से यहाँ कभी नहीं आ पायेंगे । जमीन पर यात्रा कर लेना विलकुल आसान है । असली यात्रा मन के तल पर करने की जरूरत है । साधना-शिविर नारगोल में नहीं हो रहा है, नारगोल में होरहा होता तो आप भा चुके हैं चहाँ । साधना-शिविर अपने भीतर होगा और वह यात्रा अगर आप करते हैं सचेतन रूप से, तो ही हो सकती है; अन्यथा रेलगाड़ियाँ हमें कही भी पहुंचा देती हैं, रास्ते हमें कही भी पहुंचा देते हैं, सिफे एक॒जगह के वाहर हमें नहीं ले जा पाते, अपने वाहर नहीं ले जा पाते । हम हमेशा अपने साथ मोजूद हो जाते हैं । साधना-शिविर में वहुत जरूरी हें कि भाप अपने को थोड़ा-सा घर छोड़ आते है। घर न छोड़ माये न््ज हों तो अभी छोड़ दें । इन तीन दिनों में आप एक नये आदमी की सरह जियें जिसका कोई ढाँचा नहीं, कोई आादत नहीं । मोर लापकी जो भादतें हैं और जो भापके ढाँचे हैं जो मन को जवड़ता है, उनसे थोड़ा सावधान रहने की कारश कर । हो सकता है बापकों विवाद करने की आदत हो । किसीने कुछ कहां नोर आप भी वात करने लगे । थोड़ा सचेत होकर देखें कि मैं कहीं अपनी विवाद करने को भादत में तो नहीं पड़ रहा हूं बोर जैसे हो ख्याल था जाय फोरन क्षमा मांग लें बोर कहें “मैं भूल गया था, मैं भूल गया । मेंरो आदत वापस लोट नायी । मैं क्षमा चाहता हूं ओर वापस लौटता को यहां छोड़ दत्ता हूं 1 ? । इस मादत को दिन भर हमारी बातें वरने की जादतें हैं । कुछनन-कुछ हम वात कर रहे मान चेठने का तो कोई सवाल नहीं हे और आपको पता ही नहीं है कि दक्रनेवाले लोग कभी भी जोवन के सत्य को नहीं जान सकते है कुचल 1 लॉग जो कमी सोने होना भी जानते है, वे ही पहुँच पाति हैं । मौन हुए थिना पौई स्वयं के सत्य तर ने कसी पटुना हू ने कभी पहुंच सकता है । हम




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