धूप के पखेरू | Dhoop Ke Pakheru
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
733 KB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धासनयाग से प्रवपरवादियों से ।
[ दुम मेरे बसे पर बस्दू पर रथरुर
शिशार करना चाहते हों --
अपने हाय यून थे से बिना ही ! ]
सीना तो मेरा भी फौनादी है
लेकिन इरता हूँ
अ्वने पीछे यड़ी बालून्दीवार हे 1
[ तुम मुक्के शहीद बनाकर
चेरी प्रतिभा बनवाने बी पाड़ में
भ्र्धोपाजन करना चाहते हो! ]
माष्डे तो मैं भी उठा सकता हूँ
लेकिन ढरता हूं
भ्रास-पास खड़े चमचों से ।
[ तुम मुक्ते निकाल फेकना चाहते हो--
दूध में मां गिरी सखी की तरह ।
झौर खुद शवकर बनकर घुलना चाहते हो ! ]
इस सभ्य समाज में
झब तक श्रौरों के ही हाथों में
भ्डे थमाये मैंने
भण्डा थामकर झागे नहीं चला मैं ।
[ आगे चलने में खतरा रहता है
और खतरा मोल लेना समझदारी नहीं--
कमन्से-कम इस सम्य समाज में ! ]
अब तक थौरों के हो सिरों पर
टोपियाँ रखी मैंने
टोपी पहन कर मंत्र पर नहीं आया मैं 1
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