सम्यक्त्व पराक्रम - भाग 3, 4, 5 | Samyaktva Prakaram- Bhag 3,4,5

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Samyaktva Prakaram- Bhag 3,4,5 by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कापते देखकर उसके पति ने कहा- अगर तुझे इतना डर लगता हे तो में कोवो को खिलाना ही बद कर देता हू। इस तरह उस ब्राह्मणी की मुराद पूरी हुई | अर्थात्‌ भोजन-सामग्री बचा लेने के लिए उसने जो युक्ति रची थी, वह सफल हुई । रात्रि का समय हुआ | ब्राह्मणी ने बची हुई भोजन-सामग्री एक डिब्बे मे बन्द की और डिब्बा सिर पर रखकर रवाना हुई । उसका कोई जार पति नदी के दूसरे किनारे रहता था | ब्राह्मणी अपने जार के पास जाना चाहती थी | मगर बीच मे नदी आती थी और नदी मे ग्राह-मगर आदि जन्तुओ का भय था| उस स्त्री ने साथ लायी हुई भोजन-सामग्री एक ओर नदी में फैंक दी। ग्राह-मगर आदि जन्तु भोजन-सामग्री खाने मे लग गये ओर वह नदी के परले पार चली गई | अपने जार के पास पहुच कर और मनोरथ पूर्ण करके वापस लोटी | छिपे वेश मे राजा भोज ने यह सब घटना देखी । राजा सोचने लगा कि मैं तो यह घटना जान गया हू, मगर इस प्रकार की घटनाए घटती हें, यह बात लोग जानते हैं या नही, यह भी मालूम करना चाहिए | इस प्रकार पिचार कर उसने अपने पण्डितो की सभा मे कहां- दिवा काकस्य भयात्‌ अर्थात्‌ 'दिन के समय काक से डरती हे।' इतना कहकर उसने पण्डितो से कहा कि अब आप लोग कहिए कि इससे आगे क्या होना चाहिए? दूसरे पण्डित तो चुप रहे मगर कालिदास ने कहा- रात्रि तरति निर्मलजलं अर्थात्‌ वह रात्रि के समय जल मे तेरती हे। यह सुनकर राजा ने कालिदास से कहा- तत्र वसन्ति ग्राहादयों अर्थात्‌ जल मे तो ग्राह आदि जन्तु रहते ह। इसके उत्तर म कालीदास ने कहा- मर्म जानन्ति सासनीन्द्रिका? अर्थात्‌ जो दिन मे कावो से डरती हे ओर रात्रि में नदी पार कर जाती हे वह स्त्री ग्राह-मगर आदि जन्तुओ से बचने का उपाय भी जानती ह। द श्री जवाहर फिरणावती अमसयाद सगलवसटरसरणरसवससससस्मधयसससस्वसनिनकसर




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