जैन दार्शनिक संस्कृति पर एक विन्हगम दृष्टि | Jain Darsahanik Sanskrity Par Ek Vihangam Dristi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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No Information available about शुभकरण सिंह बोथरा - Shivkaran singh Bothra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३ )
व्यक्तियों का समस्त समुदाय के व्यबहार व विचार पर एक छत्र
अआधिपत्य, स्वाधियों के हाथों इस सत्ता का दुरुपयोग, सामान्य
सी बातों पर भीषण युद्ठों का तांडव, तत्व ज्ञान का विलोप, यह
थी आज से १५०० से ३००० वर्ण पूर्व की गाथा ! यद्यपि ३०८०
बप पूर्वे व्यवद्दार में सोप्रत्व विदाई नदी पा चुका था एवं उस
समय भी समृद्धि तथा सुख्ब की शे।भा में निखरे हुये भारतीय
व्योम के बादल यदाकदा अन्य मानव समूद्दों पर अपना शांति
पीयूष छिटका दिया करते थे किन्पु ज्ञान की गति के रुख को
बदलता हुआ देख दूरदर्शी समभ गये थे कि अब समय का
प्रवाह कठिन दुरूदद घाटियों के वीच से बह्देगा एवं झाश्चर्य नददी,
सभ्यता शिलाय्ंडों से टकरा कर विष्वंश हो जाय । शत.
अपनी श्रपनी सूक के अनुसार सभो ने भारतीय सभ्यता का
कठोर बनाने का प्रयत्न किया, किठु प्रबाह के वेग के झअनुरूप
शक्ति संचुय न दो सका एवं बिखर गयी इमारी सारी पूजो,
हम मार्गेश्रष्ट हुए अंत में पददलित भी । प्राकृतन काल के उन
दूरदरशियों में मद्दावीर का नाम अग्रगएयों की गणना में शा
चुका हैं ।
समाज के लिये नया विधान दिया मद्दावोर ने, तत्वचिता
के क्रम को स्थिर किया एवं सत्य के स्वरूप को अधिक स्पष्ट
करन में सफलता प्राप्त की; तुलना व युक्ति की सावं भौमिक मद्दा-
नता का दिग्दुशन कराया तथा व्यवहार व निश्चय ( स्वभाव )
के पारस्परिक संजंघ का ध्यान रखते हुये उनको यथा व ॒ योग्यता
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