अंगारे | Angare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकल्पों के बीच में-- [ *ै एक साधारण सा गाँव है श्रौर बाजार लगी हुई है । इघर उधर श्रनाज कपड़े मिठाई पसरइ तथा शाक माजी झादि की दुकानें लगी हुई हैं । प्रथ्वी की सतह से कुछ ऊनचे चबूतरे से बनें हैं । दूकानदार लोग उन्हीं पर श्रपनी दुकान लगाये बैठे हुये दें। जहाँ चबूतरे नहीं हैं. वद्दों लोग ज़मीन पर ही कपड़ा बोरा या टाठ बिछाकर--नहीं तो इंट ही रखकर--बैठ गये गये हैं । यत्र वन नीम तथा जामुन के दो चार पेड़ भी हैं । कुछ बृकानदार इ हीं पेड़ां की जड़ों के सद्दारे बैठकर वूकान सजाये हुए. हैं । क्रय विक्रय के कथोपकथन से जो एक गम्मीर नाद उठता है बद्द विधाता की सष्टि की भाँति व्यापक श्री सर्वथा विलक्षण लक्षित दोता है। इस छोर से उस छोर तक जैसे बहुत कुछ है पर सिलसिला उसका'टूटा हुआ है। लोग चीज़ श़रीदते हैं. पर प्रसन्न होकर नहीं मजबूर दोकर । वस्तुश्रों की नवीनेता जितना उनको प्रभावत करती है पैसे का श्रमाव उससे शझ्रधिक उनके छुदय को कांटता श्र जलाता दै | जापुन के एक दच्त की जड़ पर वैठी हुई गिलइरी अपने झगले पजों से जामुन पकड़े दुए. उसे कुतर कुतर कर खा रही है। एक बार ज़रा सा गूदा श्पनी 'बठोरी जीभ से लगाकर इघर उधर देखती रददती दै कभी फुदककर ऊपर 'चढ जाती है कभी नीचे उतर श्राती है। ऐसा प्रतीत होता है जैद्े,रूछ दता श्ौर भोग के क्षेत्र म मनुष्य श्राज इस गिलदरी की भी श्रपक्षा धीन--झयस्त हीन--बन गया है । जाएुन के इसी पेड़ के निकट शाक भाजीवाले ताज्ञी हरी दरी तरकारियोँ लिए डरुए उ साइपुलकित मुद्रा से प्रत्येक 'यक्ति की श्रोर उत्सुकता भरी झाँख बिछा रहे हैं। इद्दां लोगों में एक सात श्राठ वर्ष की एक बालिका भी दे |




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