रहीम ग्रन्थावली | Raheem Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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18 / रहीम प्रन्यावसी है, सजने मजाने मा भाढ़ है, सातसा है, विदग्घता है, छत है, मान- मनौ-अन है, श्रतीक्षा है, रागरग है, ईर्ष्या है, उटरण्ठा है और लगन है। कुल ले-देकर लोविद श्गार वी लहकंदार छटा है । इस काल की दो रचनाएँ हैं--बरदे नाधिका भेद और नथर- झोभा । वर दें नाधिका भेद में नायिरा को विभिन्‍न अवस्थाओं के चित्र हैं। एक चित्र है: मितवा चलेउ दिदेसवा, मन अलुराशि । पिय वी सुरह गर्गारिया, रद्ि मग लागि 11 इस वि में प्रिय की स्मृति वर कलश लिये नाधिका रास्ते में खड़ी रहती है, बव प्रिय लौटेंगे और स्मूतियों से भरा हुआ कलश उनका मगल-पकुन बनेगा । एक दूसरा चित्र है . 'भोरहिं वोलि शोइलिया, चढ़दत्ति ताप । धरी एक घरि अलिया, रहू चुपचरप 1! बभी नोद रात भर स्मृतियं मे सोये-छोदे उचटी रही । जरा सी आँख लगी कि कोयल सदेरे ही बोल पढ़ी और सदेरे ही सवेरे ताप बढ़ गया । एक धढी तक तो चुप रहती ! इसी काल की दूसरी रचना है, लगर-दोभा जिसमें विभि्त व्यवसायो, वर्गों, जातियो-उपजातियों की रूपसी तथणियों के चित्र हैं। शुजड़िन का एक चित्र है: भाटा बरन सु कौजरी, बेचे सोवा साग । निलजु भई घेलत मदा, गारी द दे फाग ॥। बेगम की तरह बाली कुजडिन सोवा सागम देचती है और निलज होकर फाग सेलती है । और इस ग्रथ मे आदि रस की परम धति को घट-चट में देखने की कोशिश है। कोई व्यवसाय छूटा नहीं है और आशवर्य होता है कि जितने व्यवसाय थे । ढफालो, गाहीवान, महावत, नाल- सन्दिनी, चिरवादारिन (सईप थी स्त्री) , तमाएरी, नगारची, दवशरी (दाल बनाने इसी]; बडदारिनी (दाद बी सेदर से नियुक्त), सदनों- यरी (साबुन बनाने बाली ] , बुन्दी यरिन (सोने व पसर पीटने वासी ) , यदीँ तक कि जिलेदारिनी भी उगमे सम्मिलित हैं और उसवा रंग कुछ थौर हो है : धौरन वो घर सपन मन प्ले जु पूघट माँहू। वाके रग सुरय की जिलेदाट पर छाँह ॥ फिलदर देय उचके: यार के रहता हू ४ उसके बाद उनका दूसरा पड़ाव बना है, जिसपर जोवन के तरह-तरह के




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