जातीय शिक्षा सांख्य [२] [ परमहंस स्वामी रामतीर्थ जी का राष्ट्रीय सन्देश] | Jatiya Shiksha Sankhya [2] [ Paramhans Swami Ramtirth Ji Ka Rashtriya Sandesh]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ ] भपने कांम से फाम । हमें या तुम्हें कया अधिकार है कि सब किसी को अपने सम्पदाय का ही बनाल़े' । मेरा काम तो केचल सब किसी की सेवा फरना है--सेवा उनकी जो मझ से प्रम रखते हैं बीर साथ ही उनकी भी जो मुध् से घणा करने हैं (यदि कोई ऐसा हो) माता उन्हों घच्चों से अधिक प्र रम्बती है ;जो अधिक नियल होते हैं । यया वे सब हो लांग जो तुम से सहमत नहीं हैं श्रम में पड़े हुए हैं १ यदि ऐसा हो भी तो उनकी भी देश को आवश्यकता है । उस चलने वाले की दशा कितनी बरी होगी जिसको केवल एक ही टांग से फूटकना पड़ता हो । सच्चा ज्ञान यही है कि पत्येक चस्तु को ईएवर की दृष्टि से देखा जाए। “हमारे पभु अब्रगुण चित न घरों । समदरशी है नाम ठिहारों सोई पार करो ॥ पर लोहा पजा में राखतर एक घर बधिक परो । | यह टुविधा पारस नहिं जानत कंचन करत खरो ॥ एक नदिया एक नार कहावे मैठो नीर भरो । जब सिलिया तो एक वरन भयो गड्ा नाम परो ॥ एक माया एक ब्रह्म कहांये शर श्याम झगरो । भव सागर से पार मोहिं नहिं प्राण जात रो ॥ हमारे पूषठु अवगुण० ॥ व्यक्तिपत घर्म भोर स्थानीय धर्म की अपेक्षा देश वा जाति को जोर जो कुछ हमारा घम है उसका अधिक धर पर समझना चाहिये । पत्येक दस्त का ठाक॑ २ परिणाम रखने से ही कार्य सिद्ध होता है । का एसा कार्य करना जिससे देश वा जाति की उन्नति दा, देवताओं की दिव्य शक्ति की सहायता करना हैं । जाज




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