मास्टर साहब | Mastar Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मास्टर साहब झकरे हम मुरारोलाल को जामुन का पेड़ मान लें, झौर हेतराम को झाम का, तो इस शाम के पेड़ के चिषय में पक खास बात कहनी पड़ेगी । यह श्राम का पेड़ जामुन के चारों तरफ़ बल खाता डुझा घढ़ा था, छोर प्रति ने जामुन के पेड़ से उसे खूब गुथा दिया था । इस गुत्थी या लिपटन ने झाम के पेड़ को कमज़ोर बना दिया था झोर ज़द ज़ोर की हा चलते-दी यह इघर-उ घर डगमगा जाता था । पर जामुन का पेड़ इतना दृढ़ झौर झचिचलित था, झौर शाम के पेड़ की यदद छप्राछृतिक गुत्थी इतनी मज़बूत थी, कि रोज़-रोज़ हलके-से-इलके और भारी-से-भारी भोौके खाकर भी ये दोनो पेड इसी भाँति गुथे खड़े रहे । पाठकगण इस छोटे-से झालड्वार में मुरारीलाल शोर हेतराम के स्वभावों को सममने की चेछा करे । मुसारीलाल थे बेश्य, शोर हेतराम ब्राह्मण । पर इस भेद ने उनका स्नेह पतला न होने दिया । दोनो ने घोर कद सह कर भी इराट्रन्स पास किया--और पक साथ-ही | कॉलिज की दुधार श्ञान-गी खरीदने के 'लिये उनके पास काफ़ी दाम न थे, झतः उन्होंने ट्य,शनों से गुज़ारा चताते हुए नौकरी की खोज शुरू की । पर जब संयोग- श्र




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