गिद्ध की आँखें | Gidhh Ki Ankhen

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Gidhh Ki Ankhen by श्यामसुन्दर - Shyamsundar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गिद्ध की आँखें ७ नाना ने खखारते हुए कहा “बेटा हम लोग तो आ। ही रहे थे, अच्छा तुम खाना ले भागे, अच्छा किया । आओ मिट्ठन चलो, इधर कोने मे घास पर बैठ जाये ।' मिट्ठन मामा ने पीतल के टिफिन का डब्बा खोलते हुए कहा 'काका, आज तो आलू मटर की तरकारी अम्मा ने भेजी है । छोटी-छोटी चने तथा गेहूँ की रोटियाँ मक्खन से चुपडी हुई मिट्ठन मामा ने एक तदतरी मे निकाल कर रखी । मैकू मामा दूर खेत के पास की कच्ची कुइया से पानी लेने चले गये । नाना यद्यपि साठ के पुरे हो चुके थे, लेकिन उनके दॉत वैसे ही थे । नाना ने मोटी रोटी के ग्रास तोड़ -तोड़' कर खाना प्रारम्भ कर दिया । मैक्‌ मामा पानी ले आये थे । नाना ने मैकू मामा की ओर देखते हुए कहा । 'बैठो मैकू जल ले आये” ग्रास को निगलते हुए आगे बोले मैकू तुम बी० एस सी खेती की भले कर लो, पर तुम्हारी अगरेजी ढंग की खेती हमारी पुरानी खेती को चपरा कर देगी । इस खेती मे मनुष्य जितना परिश्रमी बन जाता है उतना तुम्हारी टिरेक्टर की खेती से नहीं बन सकता । मेकू मामा ने भी अपनी खाकी थैला नुमा पतलून सम्ह्मालते हुए कहा । 'काका ऐसी बात नही । योरोप के लोग बडे परिश्रमी होते है । वह एक मिनट भी अपना समय व्यर्थ मे सष्ट नहीं करते | वहाँ के किसान वैज्ञानिक ढग से खेती करते है, जभी उनके किसान खुशहाल दै। उनकी झोपडियो में भी वही आस्दोपभोग की सामग्री देखने को मिलेगी जो दहर वालो के यहाँ होती है ? काका मुस्कराने लगे , मुस्कराने से उनके गाल पर कई शझुर्रयाँ पड जाती थी । उनके गाल पर पड़ी हुई तीनो झुर्रियाँ बीस बीस वर्ष का पुर्ण अनुभव एवं सजीव इतिहास चित्रित करती थी । गाँधी जी का समय था । वहू गाँधी जी से बहुत अधिक प्रभावित थे । उनकी प्रत्येक बात में गाँधी जी का उदाहरण अवश्य रहता था । नाना यद्यपि केवल




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