मूर्ति | Murti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मूर्ति  - Murti

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजेन्द्र सिंह - Rajendra Singh

Add Infomation AboutRajendra Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उपदेश श्र “नहीं सन्तोष 1” “क्यों नहीं पिता जी । श्रापही तो कहते थे कि संब मनुष्य एक हैं । जब बच्चा पैदा होता है. तो उसमें कोई चिट् नहीं होते, जिससे यह मालूम हो कि वह ऊंच था नीच हूँ ।”' “यह सच हूँ श्र इसी वो सहारे मेंने तुम्हें पाला, परन्तु दुनिया. बड़ी सिष्ठुर है । पुराने रस्म-रिवाज उसे बुरी तरह जकड़े हुए हूँ श्ौर जब तक वह तोड़े नहीं जाते हमें उन पर चलना पड़ता है ।” गम उन्हें तोड़ गा । “सन्तोष' व




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now