मूर्ति | Murti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपदेश श्र
“नहीं सन्तोष 1”
“क्यों नहीं पिता जी । श्रापही तो कहते थे कि संब मनुष्य
एक हैं । जब बच्चा पैदा होता है. तो उसमें कोई चिट् नहीं होते, जिससे
यह मालूम हो कि वह ऊंच था नीच हूँ ।”'
“यह सच हूँ श्र इसी वो सहारे मेंने तुम्हें पाला, परन्तु दुनिया.
बड़ी सिष्ठुर है । पुराने रस्म-रिवाज उसे बुरी तरह जकड़े हुए हूँ
श्ौर जब तक वह तोड़े नहीं जाते हमें उन पर चलना पड़ता है ।”
गम उन्हें तोड़ गा ।
“सन्तोष' व
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