वाम मार्ग | Vame Marge

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Vame Marge by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नास्तिक्य श्द न *जोव प्रकृति की एक विशेष श्रवस्था का नाम है । जेसे चांद के बढ़ने-घटने से ज्वार उठता हैं; वैसे ही मनुप्य जीदन-मिर्माण के समय उस पर नक्षत्रों का प्रभाव पडता है । जिस ऋतु में; जिस घड़ी में शरीर नक्षत्र में बीजारोपण होता हें, उस में मनुप्य के शरीर श्रौर वृद्धि पर उनका प्रभाव पड़ता हूं शरीर लैसा ही सनुष्य वन जाता है । इसमें न किसी पुर्च जन्म की आआयवयकता है न पुर्व जन्म के फल की । “से स्वर्गों नापदर्गों वा नवात्मा पारलौन्तिका । नैेच वर्णाश्रमादीना क्रिया फल दाधिकां “जब पुर्व जन्स नहीं तो भविप्य के जन्म की भी श्रावइयकता नहीं । यह संसार श्रौर उससे यहू जन्म ही सच कुछ है । इसी को सुखमय बनाने में यत्न करना कर्तव्य हैं । “सब लोग एक ही परिस्थिति में उत्पन्न नहीं होते । इस कारण सब एक समान सफल नहीं हो सकते । इस पर भी जो इस जीवन को सुखमय चनाने में सलग्न हो जाते हैं, वे अपनी शक्तियों का श्रधिक से श्रधघिक लाभ उठा कर श्रघिक से श्रधिक सुख संचय करते है । भावी जन्म न किसी ने देखा है न इसकी प्रमाण हे । यह कुछ चतुर जनो ने ससार को मर्ख बनाने के लिये एक श्रति रहस्यमय गल्प का निर्माण किया हैं । इह लोकात्‌ परो नान्य. स्वर्गोधस्ति नरका न च। दशिवलोक्ादयों मूठ कत्पयन्तेडन्पें प्रतारकै: ॥ “ोसानु ससझे द्द कुछ 4 “श्रवण किया हैं । मनन करूंगा श्रौर यदि समझ पाया तो कार्यान्चित करने में लग जाऊंगा ।” “एक ब्राह्मण का झाशीर्वाद श्रीमान्‌ के साय हैं ।” पदचात्‌ कुछ विचार कर पंडित नाकेश ने कहा, “एक वस्तु और दिखाता हू । बायद वह श्रीमान्‌ की सेवा के योग्य हो सके 1”




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