हिन्दी - पद्य - पीयूष की कुन्जी | Hindi-pady-piyus Ki Kunji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतेन्दु दरिश्वन्द्र । श्ड हहैं इत के सब भूत पिशाच उपासी «. «« शब्दाध--पिशाच प्रेत । उपासी «उपासना करने वाले । स्वयं प्रकासी - अपने श्माप को सिद्ध मानने वाले । सगरे --सारे । सुपथ अच्छे रास्ते को । साव्यधे --अब यहाँ ( भारत ) के सभी लोग भूत प्रेतो की उपासना करने लगेगे, कई तो स्वयं ही झपने को सिद्ध समभगने वाले वन जाएँगे । कभी नष्ट न होने वाले चिरस्थायी) सारे सत्य तथा धर्म भी नष्ट दो जाएँगे. छाव भारत के निवासी ईश्वर से मुंह सोड चार नास्तिक हो जाएँगे, और सभी सन्मार्ग को छोड़ कर कुमागं पर चलने लगेंगे । इस लिये हे आठ वीरो ! व भारत की सब छाशा छोड़ दो । अपनी बर्न कई रविहें सबहिं पराई . शब्दाध--पहेँ न को । गहिहैं > पयड़ेंगें । धाई -दौडयर । भावाध -'अपनी वस्तुओं फो सभी पराई देखेरे । सब 'अपनी चाल ( रीति, छाचार ) छोड कर के दोड कर ( कटपट ) दूसरों पी बाल यो भहण परेंगे । 'अपने स्वार्थ के लिये हिन्द के साथ लड़ाई फरेगे 'मार दुष्ट पुरपो ( मुमलमान इत्यादि नीच जातियों के चरणों को सिर पर चटा कर रखेंगे पर्धात्‌ 'पपसी स्वाधे-सिद्धि के लिये 'आत्म-गौरद को त्याग कर नीचयो के चरणों पर सिर झुवाएँगे ) सपने कल को छोड पर नीचो के साथ ग्हेंगे ( 'र्थाद्‌ हिन्दू धरम को छोड़ कर सुसल्मान या इंसाई दन जाएँगे) इस लिये ऐ श्रेष्ठ चीरो 'अव भारत दी सब 'ाशा छोड़ दो 1




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