समाधि - शतक | Samadhi-satak(1983)ac.5702
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
देह में गई । इन छोटे-बड़े दारीरों के कारण यद्यपि श्रात्मा की श्राकार
रुप श्रबस्था तो बदली पर शथ्रात्मा न जन्मी, न सरी, न उसका कोई खंड
हुच्ा श्रौर न उसमें कुछ श्राकर मिला । जंसे दीपक का प्रकाश छोटे स्थान
में थोड़ा फंलता है व बड़े स्थान में वही ज्यादा फल जाता है झ्ौर यदि
उसे फिर छोटे पात्र में रख दें तो वह फिर संकुचित हो जाता हैं बंसे हो
यह श्रात्मा छोटी देह में संकुचित होकर छोटी श्रौर बड़ी देह में फंल
कर उड़ी हो जाती है ।
इस ऊपर कहे हेतु से यह सिद्धान्त सिद्ध है कि जो उत्पाद व्यय श्रौर
प्लौव्य रुप हो उसे सत् कहते है श्रर्थात् जो सत् रूप वस्तु है. वह श्रपने
स्वरूप व गुरोों की श्रवेक्षा सदा रहती है ग्रत: प्रौव्य रूप है परन्तु श्रवस्थाश्रों
को श्रपेक्षा सदा बनती बिगड़ती रहती है श्रत: उत्पाद श्रौर व्यय रूप
है। ये तीन बाते हर समय हर द्रव्य में पाई जाती हैं । कल सवेरे हमने
जिस श्राम के फल को बिलकुल हरा देखा था श्राज सवेरे हम उसे कुछ
पीला पा रहे हैं। हरे से पीले होने रुप उसको यह श्रवस्था हर समय धीरे-
धीरे हुई है, ऐसा नहीं कि एकदम हो हरे से पीलापन हो गया हो श्रौर
इस तरह यद्यपि समय-समय वह श्रवस्या पलटी है तथापि. वर्ण गुण तो
सदा ही रहा है श्रोर उसका श्रायार जो गुर रूप ग्राम के परमाए हैं वे
भी सदा ही रहे हैं ।
छः द्रव्तों में जीव श्रौर पुदूगल को छोड़ कर चार में सदा स्वभाव रूप
शुद्ध परिरामन ही होता है । झुद्ध जीवों में भी ऐसा ही स्वभाव रूप शुद्ध
परिणमन होता है । शुद्ध पदार्थों में किसी दूतरो विकारक वस्तु के निमित्त
के बिना कोई विकार रूप झ्रवस्था नहीं होती जैसे शुद्ध निर्मल पानी में
तरंगें तो उठती है पर वे सब निर्मल रूप ही उठती है । भ्रशुद्ध दष्यों में
निमित्त नेमितिक सम्बन्ध से विकार रूप भ्रवस्थायें पलटती है जैसे हरे,
पीले, लाल डांक के सम्बन्ध से ही स्फटिक मरि के पाषारा में हरे, पीले,
लाल रूप विकार होते हे एवं संसार श्रवस्था में कार्माण रूपी सूक्ष्म देह
सहित जीव के ज्ञानोपयोग में मोह कर्म के उदय से ही क्रोध, सान, माया,
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