थात्वार्ता श्केवार्थिकालंकर | Thatvartha Shkevarthikalankar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
78 MB
कुल पष्ठ :
700
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तत्त्वार्थचिन्तामाणि: पथ
न कल न कक वि रच पलक, 'पसिदिद लिथ, न कि पेय, फिदनिय निदपिकर कक लय चिता ि, कि फेल के गिर कर
यन्मनः परयेयावारपरिक्षयविद्ेषतः ।
मनःपयेयण येन मन्पर्येति योपि वा ॥ 8 ॥।
है कक, ७, ३, १ जा
स मनपयया न्ञया मनाजाधथा मनागता, ।
परेषां स्रमनो वापि तदाठबनमात्रकम् ॥ ७ ॥
जो ज्ञान मनःपर्ययज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशामरूप विशेष परिक्षयतसे अपने या दूसरेके
मनमें ठद्रे हुये पदार्थीका जानछिया जाता है या मनोगत पदार्थोका जिस करके अतीन्दिय प्रत्यक्ष
ज्ञान किया जाता है, वह मनःपर्वय है अथवा जो ज्ञान मनमें तिष्ठे हुये पदार्थोकों चारों ओरसे
स्त्रतत्रता पूर्वक प्रत्यक्ष जानता है बह भी मनःपर्यय ज्ञान समझना चाहिये। इस प्रकार मन: उपपद्के
साथ परि उपसर्ग पूर्वक इण् गतौ घातुत्ते कर्म, करण, और कर्तोमें अजु प्रयय करनेपर मनःपर्यय
झा बना है। यहां मनमें स्थित होरहे पदार्थीका मनः दाद्रसे प्रहण किया गया है । अन्य जीवॉका मन
अथवा अपना भी मन उस मन: पर्ययज्ञानका केवल आउंवन ( सहारा ) है, जैसे कि किसी मुग्घ
या स्थूछुटि पुरुषकों द्वितीयाके चन्द्रमाका अवछोकन करानेके ठिये बक्षकी शाखाशोंके मध्यमेंसे या
बादलोंमेंसे उदय बंधाया जाता हैं । वहां शाखा था बादल केवल बृद्धयष्टिकाके समान अवछंब मात्र दे ।
वस्तुत: ज्ञान तो चक्षुसे ही उत्पन्न हुआ है, इसी प्रकार अतीन्दिय मन: पर्यय ज्ञान तो आत्मासे दी
उत्पन होता है किन्तु खकीय परकीय मनका अवछेब कर ईद मतिज्ञान द्वारा संयमी मुनिके
विक प्रयक्षरूप मनःपर्ययज्ञान होता हे |
शायोपराभिकज्ञानासहायं केवल मत ।
च जि ७... के र५. ५ अभ
पदथमर्थिनो मार्ग केवंते वा तदिष्यते ॥ ८ ॥
केवल शद्गका अर्थ किसीकी भी सद्दायता नहीं ठेनेवाढा पदार्थ है । यह केवलज्ञान अन्य
चार क्षायोपदामिक ज्ञानोंकी सहायताके बिना आवरणरहित केवल आत्मातते प्रकट ह्ोनेवाला
माना गया है। अथवा स्वत्मोपलब्धिके अभिछाषी जीव जिस सर्वज्ञताके छिये मार्गको सेवते हैं, वह
केवकज्ञान इष्ट किया गया है. । दोनों ही निरुक्तियां अच्छी हैं ।
मत्यादीनां निरुक्त्येव क्षण सूचित एथक् ।
तमकादाकसूत्राणाम भावादुत्तरत्र हि. ॥ ९ ॥।
यथादिसत्रे ज्ञानस्य चारित्रस्थ च ठक्षणम्।
निरक्ते्यंभिवारे हि लक्षणांतरसूचनम् ॥ १० ॥
ििकिककटयकय . 0 ७ जय गय थक याद ययददकय टलटिडटटदपटययसयमयतदयपमयन/नवयवान/नद्टालयालदलालकाातलकदमनतलाकधताारवलिवियललंकााादलयालयाधाययायका्रनियदालयलनवददधकनाड तक अपाला, हिंद #नलग दा ली हवन अल धीनििनटय पीपल पवकलजापकथिय प्िटिफ-ियाध थक कि था गन
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