जैनबालबोधक भाग - ४ | Jainbalbodhak Volume - Iv
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चठुद माग | श्र
४. क्षण |:
१ । पदार्थीकों ज्ञाननेके लघ्चण, प्रमाण, नय अर निक्षेप ये
चार उपाय हैं ।
२। बहुतसे मिले इुये पदा्थामिस किसी पक पदार्थकों जुदा
करने चाले देतु (करण ) को लक्तण कहते हूं । जैसे जीवको
लक्षण चेतना
। लत्तणके दो मेद दें एक श्रात्मभूत दुसरा ध्यनात्मभूत 1
४ | जो लतज्तण चस्तुके स्वरूपमें मिला हो उसे आत्मभूत लक्ञण
कहें हैं । जैसे,- श्मिका लज्नण उप्यापना ।
५1 ज्ञो लक्तण वस्तुके स्वरूपमें न मिला हो उसे श्नात्मभूत.
लक्नण कदते हैं । जेसे--लटेंतका लक्षण लाठीवात्ता |
६1 सदोप लक्ञणकों त्वक्षणामास कहते हैं । लक्तणके दोप
तीन हैं एक अव्यात्ति दुसरा अतिव्यात्ति, तीसरा श्रसंभव दोप ।
७। जिस चस्तुका लक्नणा किया जाय उसे लक््य कहते हैं ।
८ 1 जो लक्तण लच्पके पएकही देशमें व्यापे सच लक््योंमें न पाया
जावे उसे श्रव्याति दोष कहते हैं । जैसे पशुका लक्षण ( पह-
चान ) सांग कहना |
९ । जो लक्नण किया जाय चह लद्लण लय शोर अलच््य दोनों
में व्यावे उसे अतिव्याति दोप कहते हैं । जिखे,-गांका लक्तण
सींग.करना । .
१० | लक्यके लिवाय अन्य पदार्थोको शल्य कहते हैं ।
११ | जो लक्तणं लच्यमें सर्वया पाया दी नदि जावे उसे असं-
भव दोप कहते हैं । जेसे,-श्म्निका लक्षण शीतलता करना -
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