जैनबालबोधक भाग - ४ | Jainbalbodhak Volume - Iv

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Jainbalbodhak Volume - Iv by श्रीलाल जैन - Srilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चठुद माग | श्र ४. क्षण |: १ । पदार्थीकों ज्ञाननेके लघ्चण, प्रमाण, नय अर निक्षेप ये चार उपाय हैं । २। बहुतसे मिले इुये पदा्थामिस किसी पक पदार्थकों जुदा करने चाले देतु (करण ) को लक्तण कहते हूं । जैसे जीवको लक्षण चेतना । लत्तणके दो मेद दें एक श्रात्मभूत दुसरा ध्यनात्मभूत 1 ४ | जो लतज्तण चस्तुके स्वरूपमें मिला हो उसे आत्मभूत लक्ञण कहें हैं । जैसे,- श्मिका लज्नण उप्यापना । ५1 ज्ञो लक्तण वस्तुके स्वरूपमें न मिला हो उसे श्नात्मभूत. लक्नण कदते हैं । जेसे--लटेंतका लक्षण लाठीवात्ता | ६1 सदोप लक्ञणकों त्वक्षणामास कहते हैं । लक्तणके दोप तीन हैं एक अव्यात्ति दुसरा अतिव्यात्ति, तीसरा श्रसंभव दोप । ७। जिस चस्तुका लक्नणा किया जाय उसे लक््य कहते हैं । ८ 1 जो लक्तण लच्पके पएकही देशमें व्यापे सच लक््योंमें न पाया जावे उसे श्रव्याति दोष कहते हैं । जैसे पशुका लक्षण ( पह- चान ) सांग कहना | ९ । जो लक्नण किया जाय चह लद्लण लय शोर अलच््य दोनों में व्यावे उसे अतिव्याति दोप कहते हैं । जिखे,-गांका लक्तण सींग.करना । . १० | लक्यके लिवाय अन्य पदार्थोको शल्य कहते हैं । ११ | जो लक्तणं लच्यमें सर्वया पाया दी नदि जावे उसे असं- भव दोप कहते हैं । जेसे,-श्म्निका लक्षण शीतलता करना -




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