श्रीजीवनु शासनम | Shrijivanusasnam Ac.1768

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Shrijivanusasnam Ac.1768 by श्री हेमचंद्रआचार्य - Shri Hemchandra Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड् पद है कण्ठ्या । इयाएणि संकियत्ति दार । निस्सकियगाहा- निस्संकियं च कादिड उभय जे संकियं च सुजहरेहिं ॥ ( दौरे ) पत्तदारमिरयाणि अव्वोन्खितिकर वा लब्मड पत्ते दूपकबाओं । ' दा ) प्भावणादार्मियाणि जाइ-कुल-सव-घण बलसंपना इटटिपंत निस्संका जयणाजना य जड़े संपन्न तित्थ परभाविति !' उपत से न पावचनी धमकी चाटी नेमिलिकम्तपस्वी च । जिनवचनसरतथ् कवि! प्रवचनमुद्धावयन्त्यत 1! जो जण गृणण रदि आओ जण विणा वा ने सिज्झण जंते | सो तण घम्पकज्त सन्वन्थामं ने होवेट ॥ ( दरें ) द्याणि पर्वित्तिदार॑ न साहम्पियागयाण खमसिवाण ने लब्मट पर्वित्त गरन्छीति जहि तार हीडिति नवाधि अच्छे बा ॥ ( दो इयाणि कज्जदार उड़ाइदार कल्माइण कन्नाट साहिस्प॑ स्िगिगों य सासिस्में | जें लोगविरुद्धार कर्गिति लोगुनराईं च समा दारगाथा | अत्र संब्िद्रारणद प्रयं'जने तदथव्यार्यानायाह तत्थ य पढमसं ठवणं पद़स णसपं गति समघविऊ | पुच्ब॑ं पडट्टियाएं रदहेमि अणयाण अहिगारा ॥१३॥ दे




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