श्री जवाहर किरनावाली भाग -१७ {उद्धरण भाग -२) | Shri Jawahar Kirnawali Part -17 ( Udharan Mala Bhag -2)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'विनाशकाले विपरीतवुद्धि ।'
एक दिन आधी रात के समय स्वय मणिरथ मदनरेखा के महल मे
जा पहुचा। वहा पहुच कर उसने द्वार खटखटाया। मदनरेखा सारा रहस्य
समझ गई | उसने किवाड खोले बिना ही राजा को फटकारा | कहा-'इस
समय तेरा यहा क्या प्रयोजन है ? जा, इसी समय चला जा यहा से ।'
राजा-मदरनरेखा विना पयोजन कौन किसके यहा आता है *? मैं
अपना मन तुम्हे समर्पित कर चुका हू। यह तन और बचा है, इसी को तुम्हारे
चरणो मे अर्पित करने के लिये आया हू। मदनरेखा, मेरी भेट स्वीकार करो।
इस तन के साथ ही यह विशाल राज्य भी तुम्हे सौप दिया जाएगा।
मदनरेखा-राजा, काम की अग्नि को अगर सहन नहीं कर सकते तो
चिता की अग्नि को अपना शरीर समर्पित कर दो। अपनी कामाग्नि से
सती-साध्वी पतिव्रता नारी के धर्म को आग न लगाओ। उस आग मे नीति
को भस्म न करो | अपने भविष्य को नष्ट होने से बचाओ | पतित पुरुष, अपने
छोटे भाई की पत्नी पर तू कुत्सित दृष्टि डालता है। मै नारी होकर तुझे
दुत्कारती हू ओर तू मेरे पैरो मे पडता है। कहा है तेरा पुरुषत्व ? जो काम
के अधीन होकर स्त्री के सामने दीनता दिखलाता है, वह पुरुष नही, हीजडा
है। तू स्त्री आर नपुसक से भी गया-बीता है। अपना भला चाहता है तो
अभी-इसी क्षण-यहा से चलता वन वर्ना तुझे अपनी करतूत का अभी मजा
चखाया जायेगा ।
मदनरेखा ने मणिरथ को जब इस प्रकार फटकार बताई तो वह
अपना-सा मुह लेकर लौट आया। फिर भी उसे सद्बुद्धि न आई। उसने
सोचा-जब तक युगवाहु जीवित रहेगा तव तक यह स्त्रीरत्न हाथ न लगेगा |
किसी प्रकार इस काटे को निकाल फैकना चाहिये ।
इस प्रकार मणिरथ का पाप वढता चला गया लेकिन पापी का पाप
बढने से ज्ञानीजन घवराते नही हे | ज्ञानीजन सोचते हैं कि पाप की वृद्धि होने
से ही आत्मीय शक्ति अर्थात् धर्म का बल प्रकाश मे आता है। अधर्म की वृद्धि
से धर्मों मे नया जीवन आता रहता है। पाप के बढने से ज्ञानियो की महिमा
बढती है। ज्यो-ज्यो मणिरथ का पाप बढ़ने लगा त्यो-त्यो मदनरेखा के
जीवन की शुद्धि वढने लगी |
अगर भारत दु खी न होता तो गाघीजी की महिमा न बढती | अतएव
पाप की वृद्धि होने पर घबराना नही चाहिए । पाप के प्रतिकार का प्रकृति मे
एक बडा नियम है | इसी नियम के अनुसार मणिरथ पाप के मार्ग पर आगे
बढता गया और मदनरेखा पवित्रता की ओर अग्रसर होती गई ।
सन पद पररवपपरपलसससपतरपिपलसपानसनपरगएलपरसशलफसपारर पएपएएपफललरपरसनएलपएएएपसससपए
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