विनती संग्रह | Vinati Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
जी, चाददी नित साता जी । सुखदाता जग-
त्राता, तुम जाने नहीं जी प्रभु भागनि पाये
जी, गुण श्रवण सुद्दाये जी । ताकि आयो सब
सेवककी, विपदा हरो जी ॥ भववात वसेरा
जी, फिरि दोय न मेरा जी । सुख पांवे जन
, तेरा, स्वामी सो करो जी ॥ तुम शरनसहाई
जी, तुम सजन भाई जी । तुम भाई तुम्दी बाप
दया मुझ लीजिये जी ॥ 'भूघर' कर जोरे जी,
ठाडो प्रभु औरे जी । निजदास निहार, निर-
गय कीजिये 'जी ॥
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ढाल परधघादी ।
अहों जगतगुरु एक; सुनियो अरज मारी 1
तुम प्रभु ! दीनदयाल, मैं दुखिया संसारी ॥ इस
भववनके मांहि, काठ अनादि गमायो। श्रमत
चहूंगतिमांहि, सुख नह दुख बहु पायों ॥ कम
महारिषु जोर, एक न कान करे जी । मनमानो
दुख देहिं; काहूसो न डरें जी .॥ कबहूं इतर
“८. ने
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