ब्रह्मविलास | Brahmavilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)2 शतबध्टोत्तरी, श्र
देखत देव कुदेव सबे जग राग विरोध धर उर दो है ।
ताहि विचारि विचक्षन रे मन ! द्वे पल देखु तो देखत को है।। १ ३॥।
कविस
सुनो राय चिंदानंद कहोजु सुबुद्धि रानी, कहूँ कहा बेर बेर
नेकु तोहि लाज है । कसी लाज कहो कहां हम कछू जानत न, हमें
इहाँ इंद्रनिको विष सुख राज है ॥ अरे मूढ विष सुख से ये तु
अनन्ती बेर, अज हूं अघायो नहि कामी शिरताज है । मानुष जनम
पाय आरज सुखेत आय, जो न चेते हंसराय तेरो ही अकाज है।। १४॥।
सुनो मेरे हंस एक बात हम सांची कहैं, कहो क्यों न नीके
कोंउ मुखहू गहतु है । तुम जो कहत देह मेरी अरु नीके राखों,
कही कंसें देह तेरी राखी ये रहतु है ॥ जाति नाहि पांति
नाहि रूपर ग भांति नाहि, ऐसें झूठ मूठ कोउ झूटोह कहतु है ।
चेतन प्रवीन ताई देखी हम यह तेती, जानि हो जु जब ही ये
दुखकों सहतु है ।1१५॥।
सुनो जो सयाने नाहू देखो नेकु टोटा लाहू, कौन विवसाहू,
जाहि ऐसें लीजियतु है । दश द्योस* विषैसुख ताको कहो केतो
दुख, परिके नरकमुख कोलों सीजियतु है ॥। केतो काल बीत
गयो अजहू न छोर लयो, कहें तोहि कहा भयो ऐसे रीक्षियतृ
है। आप ही विचार देखो कहिवेको कौन लेखों, आवत परेखों
तातें कह्यी कीजियत है ॥1१६॥
*. मानत न मेरो कह्यो मान बहुतेरो कह्मो, मानत न तेरो गयो
कहो कहा कहिये । कौन रीि रोझि रहो कौन बुझ बझ रह्यी
ऐसी बातें तुमे यासों कहा कहीं चंहिये । एरी मेरी रानी तोपों
कौन है सयानी सखी, 'ए तौ 'बेफ्री विरानी तु न रोस गहिये
(१) दिन. (२) दीन संबोधन ।
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