मेरी जीवन यात्रा खंड 1 | Meri Jeevan Yatra Part-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.38 MB
कुल पष्ठ :
520
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९०१ ई० है ४. वो साथी १8 युछ शिया. व्यरक्तियोंका सम्पर्क ही था जिसने मेरे दिलमें शिया-समाजके लिये एव खास स्थायी स्नेह और सम्भानका भाव पैदा कर दिया । प्र नासेफि यहांबे लाड़-प्यारने खासेके बारेमें भी मेरी विशेष रुचि पैदा कर दी । दालसे मुझे नफ़रत थी क्योंकि बचपन हीसे दूधनदहीं खांड़-्वीरा या मछली- तरकारीसे रोटी खानेंफा में आदी था । शायद होश संभालने से पहिले मेंने अपनी शूस रुखिकों लोगोंसे मसनवा लिया था इसलिये दाल स्विलानेका कोई आग्रह न करता था । परदहामें घानके खेत न थे हां साठी धान होता था किन्तु मुझे भातमे बहुत चिढ़ थी । मेरे जस्मसे पहिले ही साना-नानी वैष्णव-दीक्षा और लुलसीयी कंठी छे चुके थे साथ ही गया-ठाकुरद्वारा भी हो भाये थे । अब मछली- साँधिसे उन्हें फोई वास्ता न था किन्तु मेरे लिये मछली-माँसिका इस्तजाम करनेमें उन्हें कीई संकोच ने था । मेरा दुबला-पतला शरीर नानाकों और भी इसके लिये मजबूर करता था । गांवमें माँस तो छठे-छमासे ही मिखता जब कि गांवके शौकीन लोग बकरा खरीद बाँटी डालते किन्तु मछलीका मीका अवसर मिलता था । शिही गरराई जैसी सछलियां जब जीती सिलतीं तो दो-दो वार+ वार रोर छेकर बैछकी सानीवाली नादमें पार ली जातीं । थादमें पानी और मिट्टीके सिना और कोई चीज डालते मैंने नहीं देखा । में तो समझता था मिट्टी खाती हैं और पानी पीती हुंनबस उनको और कुछ नहीं चाहिए । बहुत सूटपनमें बसे धनतीं यह तो मुझे याद नहीं किन्तु होश सेँभालनेपर में ही आंगन था गोसारमें मछली पकाला । नानी मसाला पीसकर दे देतीं और पकासेका तरीका । आमका मौसिम होनेपर उसे मछलीमें जरूर डाला जाता-आकायाके आस और पातालकी मछलीके समागसक्तो एक पुण्यकी बीज समझा जाता था । जितने दिंग जखीरा तैयार रहता में दूध-तरकारीकी बात भूख जाता । आम- तौररी सबेरे दही-रोदी दोपहरकों दूधनरोठी शामकों दूध था तरकारीके साथ रोठी खामेकी मिलती ।. दहीके साथ खांड या चीनीसे अन्तिम बारका निकाला बौरा ठोपारी जरूरी था । ठोपारी शीरा मुझे बहुत पसन्द था । गुड़कों 5 घारण उसमें पता ५ सॉधापन होता और साथ मो सु में थी उससे मौजूद रहता । नानानें किसी कार नोरोधांडिकों सोनरों सो रुपयं बजे ४ रखें थे और मीरा प्रसीके सूद जाया करता था । ं 21नागा तब पी मेरी जावर्यपराएं धन सुस्तसर थीं । गामूडी गो पतली पोतियाँ + रखे लिखे थे 1 आर झनी था जननी चरसे गरखला
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