भारतेंदु और अन्य सहयोगी कवि | Bhartandu Aur Annya Sahyogi Kavi

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhartandu Aur Annya Sahyogi Kavi by किशोरीलाल गुप्त - Kishorlal Gupta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about किशोरीलाल गुप्त - Kishorlal Gupta

Add Infomation AboutKishorlal Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भर कि री भ्मीक एवं नाटक नामक गये अंथ संकलित हैं । द्वितीय खण्ड में इतिहास की १३ पुस्तकें, तृतीय खण्ड मं राजपक्ति सम्बन्धी १२ कबिताएँ, चठुथ खण्ड में भक्ति सम्बन्धी २० गये पद रचनाएँ, प्य्प खण्ड में छोटे बड़े २८ काव्य ग्रन्थ हैं; छठे खण्ड में मारतेन्ट की विविध रचनाएँ हैं जो संख्या में कम हैं, परन्दु यह खण्ड उपेश्ाकृत बृहत्काय है, क्योंकि इसमें मारतेन्दु द्वारा सम्पादित एवं संकलित शंथ भी एकत्र हैं । भारतेन्द् की कृतियों की एक बृहत सूची बा० तंजरलदास ने 'मारतेन्दु हरिश्चन्द्र के परिद्चिष्ट 'इ सें दे दी है । भारतेन्ढु बाबू केवठ हिन्दी के कवि न थे; वे संस्कृत, उदू, बैंगला, गुजगती पंजाबी, मारवाड़ों के भी कवि थे । दक्षिण की द्रविड़ माषाओं को छोड़, उत्तर मारत की पायः सभी माषाओं के वे जानकार थे । पुरानी भाषाओं में वे घ्राकृत मे पूर्ण अमिज्ञ थे । विदेशी भाषाओं में थे अँगरेजी से परिन्वित थे । भारतेन्दु बाबू एक बार लिखकर फिर उसका संदयोधन नहीं करते थे । वही इस्तलिपि छपने को भेजी जाया करतो थी । “प्रफलीट' को भा मूल से नहीं मिंलाते थे । लिखने की गति अत्यन्त द्रत थी । अन्वेर नगरी, बलिया वाला लेक्चर एक एक दिन में छिखे गये थे । विजयिनी विजय वैजयंती सभा होने के दिन रची गई थी । उनकी लिपि अत्यन्त सुन्दर थी । वे बातें करते जाते थे और ल्खिते जाते थे । हिन्दी ही नहीं, उठ; अँगरेजी, महाजनी, गुजराती भी इसी आीघता से ल्खिते थे । उनका अधिकांश समय लिखने पढ़ने ही में व्यतीत डोता था । लिखने की सामग्री संदेव साथ रखते थे । रात रात जब जी में आया, लिखने लगते थे । बढ़िया कागज कलम की परवाह उन्हें न थी । विनके से कम का और कोयले से पेंसिल का काम ले लेते थे । इन्होंने स्वप्न में भी कुछ रचनाएँ की थीं । वे आशु कवि थे । तुरन्त समस्या पूर्ति करना तो. उनके बायें हाथ का खेठ था | मारतन्ड पक्के समाज सुधारक थे । वे बाल विवाह के विरोधी एवं विघवा- बिचाह तथा ख्री थिक्षा के पक्षपाती थे । विवाह में अपव्यय को अनुचित समझते थे । अपनी कन्या के विवाह में गाछी बन्द करा दी थी । वे मदिरा,. मांस, फ्रेदान, अदालत, खुशामद, फूठ, डाह, स्वाथपरता, पक्षपात, निरबंछता आदि को समाजोन्नति में बाधक मानते थे और विलायत-यात्रा के पक्षपाती थे | समाज-सुधार की भावना से उन्होंने छोक साहित्य में भी बहुत कुछ योग दिया । भारतेन्डु बाबू सौन्दर्य के अन्य प्रेमी थे । वे प्रकृति सोन्दर्य, वस्तु सौंदर्य, काव्य सौन्दर्य, नारी-सीन्दर्य सभी के पुजारी थे । संगीत उन्हें प्रिय था, उनका कष्ठ भी सुरीछा था । वे स्वयं ताल आर झाँझ अच्छा बजाते थे । सितार, मृदग,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now