कृष्ण - चन्द्रिका | Krishn Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
337
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कर मारा जाना आदि विषय वर्णित हैं । कृष्ण का स्वरूप बड़े सुन्दर श्र
सुमघुर शब्दों में वणन किया गया है । यथा :--
सिर पुरट मुकट छवि छत उदृंड, मनिजटित जोति को टिन प्रचंड ।
सुभ भाग्य भाल सो भा नरिन्दू, खगदान बिन्दु निन््दक मिलिन्द ।
अमग भाल अवलीन ऐन, रहि श्रमल कमल दल नवल नेन।
कच कुंच मेच चिकने. अबंध, जे सने दिव्य सोरभ सुगंध ।
मनि किरन मकर कुंडल्र बिल्लोल, छवि गिलत उगल गोरव कपोल ।
सुक तुंड॒ मंडि नासा सुकास, मल भलत खुलत जनु जलज जास ।
छुवि अघर सघर रंग चुवत लाल, बंधूक दूब बिम्बा प्रबाल ।
दवि दूसन दीख्ि द्मकत सुदेस, जनु कुंद कुबिस कर निकर बेस ।
सखदु मंद हास हुलस्यो हुलास, सुख सिन्घु सींव कीन्डों प्रकास ।
ठोड़ी सुरूप द्रग ठह्रि बाढ़ि, मनु पारिव गडि को सकहि काढ़ि ।
कल कम्बु कं लावण्य चारु, तहूँ कास्तुभ किरनोदय उदारु ।
सुभ वक्ष क्त्त श्रगु पद रसाल, मनि मुकुलि माज्लिका मुक्कमाल ।
भुज चारि चारु श्राल्म्ब चारि, दर पद्म गदा कर चक्र धारि ।
अ्रज्ञान बाहु मनि पट बंध, उन्नत बिसाल मनि बंध कंघ ।
वरान बहुत लम्ब है । प्रत्यक पद की योजना नपी तुली और भाषा
भावानुरूप है । शब्दविन्यास भावों को मानो अपने आप खींच कर नेत्रों के
सन्मुख रख देता है । आगे चलकर देवकी की स्तुति म॑ वेदान्त के विशद
शब्दों का प्रयोग किया गया है । वे शब्द अनुचित नहीं मालूम होते । अंधकार
का वणन और यमुना का अप्रतिहहत रूप से प्रवाहित होना बड़े भयंकर शब्दों
में दिखलाया गया है । भयानक रस का अच्छा परिपाक है । एक तरफ पुत्र का
स्नेह दूसरी तरफ प्रकृति की प्रकाणुड प्रचणडता कवि के शब्दों ही में पढ़ने
लायक है । इस प्रकाश में कावे. के करतव अच्छे और अभ्यस्त हैं । फलतः
प्रकाश अच्छा है । भाषा परिमार्जित है ।
पाँचवें श्रकाश में पुत्र जन्मोत्सव, कंस का कृष्ण के जन्म की खबर
पाना, पूतना, सकट और तृणावत्ते आदि राक्षसों का मारा जाना आदि विषय
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