कृष्ण - चन्द्रिका | Krishn Chandrika

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Krishn Chandrika by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ ) कर मारा जाना आदि विषय वर्णित हैं । कृष्ण का स्वरूप बड़े सुन्दर श्र सुमघुर शब्दों में वणन किया गया है । यथा :-- सिर पुरट मुकट छवि छत उदृंड, मनिजटित जोति को टिन प्रचंड । सुभ भाग्य भाल सो भा नरिन्दू, खगदान बिन्दु निन्‍्दक मिलिन्द । अमग भाल अवलीन ऐन, रहि श्रमल कमल दल नवल नेन। कच कुंच मेच चिकने. अबंध, जे सने दिव्य सोरभ सुगंध । मनि किरन मकर कुंडल्र बिल्लोल, छवि गिलत उगल गोरव कपोल । सुक तुंड॒ मंडि नासा सुकास, मल भलत खुलत जनु जलज जास । छुवि अघर सघर रंग चुवत लाल, बंधूक दूब बिम्बा प्रबाल । दवि दूसन दीख्ि द्मकत सुदेस, जनु कुंद कुबिस कर निकर बेस । सखदु मंद हास हुलस्यो हुलास, सुख सिन्घु सींव कीन्डों प्रकास । ठोड़ी सुरूप द्रग ठह्रि बाढ़ि, मनु पारिव गडि को सकहि काढ़ि । कल कम्बु कं लावण्य चारु, तहूँ कास्तुभ किरनोदय उदारु । सुभ वक्ष क्त्त श्रगु पद रसाल, मनि मुकुलि माज्लिका मुक्कमाल । भुज चारि चारु श्राल्म्ब चारि, दर पद्म गदा कर चक्र धारि । अ्रज्ञान बाहु मनि पट बंध, उन्नत बिसाल मनि बंध कंघ । वरान बहुत लम्ब है । प्रत्यक पद की योजना नपी तुली और भाषा भावानुरूप है । शब्दविन्यास भावों को मानो अपने आप खींच कर नेत्रों के सन्मुख रख देता है । आगे चलकर देवकी की स्तुति म॑ वेदान्त के विशद शब्दों का प्रयोग किया गया है । वे शब्द अनुचित नहीं मालूम होते । अंधकार का वणन और यमुना का अप्रतिहहत रूप से प्रवाहित होना बड़े भयंकर शब्दों में दिखलाया गया है । भयानक रस का अच्छा परिपाक है । एक तरफ पुत्र का स्नेह दूसरी तरफ प्रकृति की प्रकाणुड प्रचणडता कवि के शब्दों ही में पढ़ने लायक है । इस प्रकाश में कावे. के करतव अच्छे और अभ्यस्त हैं । फलतः प्रकाश अच्छा है । भाषा परिमार्जित है । पाँचवें श्रकाश में पुत्र जन्मोत्सव, कंस का कृष्ण के जन्म की खबर पाना, पूतना, सकट और तृणावत्ते आदि राक्षसों का मारा जाना आदि विषय




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