चिंतन के धागे | Chintan Ke Dhage
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब
१३3 ब्याम १ काव्य और नीति के सेतुक्तत'
(२ बिशुद्ध नीति-काव्य --चाणक्यनीति» विद्ुरनीति, शुक्रनीति ादि
(३) काव्य-नीतिं मिश्रित--ऐसी रचना में कवि उपदेश की कड़ची
गोलियों को मघुर वलेदद के साथ उपस्थित करता हे।
नीतियों के भी कई भेद किये जा सकते हैं --
(९ चरित्र-निर्माणात्मक
(२) कत्त व्य-निर्धा रशात्मक लि
(0 सामाजिक, पारिवारिक एवं विश्ववंधुर्व-संबंधित मी
* (४) 'छाध्यात्मिक (घर्म, ईश्वर, परलोक, मोच्त 'आदि से संपंधित):
महाभारत में सभी प्रकार की नीतियों भरी पड़ी दें
महाभारत सूक्तियों का '्रागार है । झादिपवें से स्वर्गारोदापषं त्तक
सद्ाधिक मसुक्तियों दैं । (श्रादिपतें के देवयानी शुकाचार्य-प्रसंग के श्रस्तरगंत यदद सूक्ति
है कि भ्रम वा. फल लुरंत नददीं मिलता है। घरती को जोत घोकर बीज डालने रे कुछ
समय बाद पीधा उगता हैं. और यथाममय फल देता है, उसी प्रकार 'प्घर्म धीरें-
चीरे कर्ता की जद काट देता है। यदि पाप से उपार्फित दव्य का कुपरिण॥म उसके
ऊपर नददीं दिसाई दिया, तो उसका डुष्परिणाम उसके पुनों तथा. नाती पोतों पर श्यवश्य
प्रस्ड दोता है। जिस तरह गरि्ठ ्रन्न यदि तुरत नहीं तो डुछ देर बाद ध्वश्य
उदर में उपदव करता दे, उसी तर किया हुआ पाप निश्चय ही श्पना फल देता हैं ।
पुनेपु वा नाप्तूपु वा न चेदात्मनि पर्यति
कलरयेव श्र पाप॑ शुरु भुक्तमिवोदरे ।
--शादिपदें (सम्भव) ८० अध्याय दे
इसी पर्व के अन्तर्गत ययाति ने कहा है कि दुए मनुष्य के सुख से भरा
बचन-बाण निकलते रहते हूं, जिनसे फ्तिने दी मनुष्य मर्माइत होकर रोनिदिव
शोकमरन रदते इ । शत विद्वान पुरुप को दूसरे के प्रति कटदचनों का. प्रयोग नहीं
करना चाहियें ।
1 पुफ़्& हातँं ० स्ारधा हु 15 10 शाईएए, फिट हा ए फ0प 15 0
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चैट एड, नारा, उठ हनन णि उ०्पघि
4. कपल मनोरजन न कवि वा कसें होना ाहिए,
उममे चित उपदेश का भी मर्म होना चाहेए ।... --मेंयिलीशरण गुप्त
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