प्राकृत व्याकरण भाग - 1 | Prakrit Vyakaran Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
985
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रतनलाल संघवी - Ratanlal Sanghavi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे )
७०
न्याय-बिषय में “प्रमाण-मीमांसा” नामक अधूरा ग्रन्थ पाया जाता दै । इनकी न्याय-विषयक
बत्तीसियों मे से एक “'झन्ययोग व्यवच्छेद” है और दूसरी “योग व्यवच्छेद” है । दोनों में प्रसाद शुण
संपन्न 3९-३९ श्लोक हैं । उद्यनाचाय मे कुसुमांजलि में जिस प्रकार इंश्वर की स्तुति के रूप से न्याय-
शास्त्र का संग्रथन किया है; उसी तरह से इनमें भी भगवान् महावीर स्वामी की स्तुत्ति के रूप में षट्-
दर्शनों की मान्यताओ का विश्लेषण किया गया है । श्लोकों की रचना महाकवि कालिदास श्औौर स्वामी
शकराचाय की रचना-शैली का स्मरण कराती है । दाशनिक श्लोकों में भी स्थान स्थान पर जो विनोद्-
मय 'श देखा जाता है, उससे पता चलता है कि श्ञाचाय देमचन्द्र इससुख और प्रसन्न प्रकृति वाले होंगे ।
“'झन्य-योग-व्यवच्छेद” बत्तीसी पर मल्लिपेण सूरि कृत तीन हजार श्लोक प्रमाण “'स्याद्वाद मब्जरी”
नामक प्रसाद शुण सपन्न भाषा में सरल, सरस और ज्ञान-व्घेक व्याख्या ग्रन्थ उपलब्ध है । इस व्याख्या
ग्रन्थ से पता चलता है. कि मूल कारिका(ऐं कितनी गंभीर, विशद 'झथ बाली 'और उच्च कोटि की है ।
इस प्रकार हमारे चरित्र-नायक की प्रत्येक शास्त्र में झन्याहत गति दूरदर्शिता; व्यवहारज्ञता,
एवं साहित्य-रचना-शक्ति को देख करके विद्वान्तों ने इन्हें “'कलिकाल-सवंज्ञ” जैसी उपाधि से विभूषित
किया है । पींट्सन आादि पाश्चिमात्य विद्वानों ने तो '्ाचाये श्री को (0८८9 0 0! ट८ट्टट 'र्थात
ज्ञान के महा सागर नामक जो यथा तथ्य रूप वाली उपाधि दी है; वह पूण रूपेण सत्य है ।
कहा जाता है कि 'ाचाय देमचन्द्र ने अपने प्रशंसनीय जीवन-काल सें लगभग डेढ़ लाख मनुष्यों
को 'झ्थात्त तैतीस हजार कुटुम्बों को जैच-धर्मावलस्वी बनाये थे ।
छन्त में चौरासी वर्ष की छायु में 'ाजन्म 'झखड ज्रह्मचये घ्रत का' पालन करते हुए श्औौर
साहित्य-प्रन्थों की रचना करते हुए सबत्त् १९२६ सें गुजरात श्रान्त के ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण भारत के
साधारण तपोधन रूप इन महापुरुष का स्वगंवास हुआ । ्यापके 'झनेक शिष्य थे; जिनसें श्री रामचन्द्र
छादि सात शिष्य विशेष रूप से प्रख्यात हैं । झन्त में विशेष भावनाष्ों के साथ में यही लिखना है कि
'माचाये देमचन्द्र की श्रेष्ठ झुतियाँ, प्रशस्त जीवन 'झौर जिन-शासन-सेवा यही प्रमाणित करते हैं कि छाप
'असाधोरण विद्वान, महान जिन-शासन-प्रमावक श्मौर भारत की दिव्य विभूति थे ।
रतनलाल संघवी
छोटी सादड़ी, (राजस्थान)
श्रनन्त चतु्देशी डे
बिक्रमाब्द २०१६ |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...