प्राकृत व्याकरण भाग - 1 | Prakrit Vyakaran Bhag - 1

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Prakrit Vyakaran Bhag - 1 by रतनलाल संघवी - Ratanlal Sanghavi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रे ) ७० न्याय-बिषय में “प्रमाण-मीमांसा” नामक अधूरा ग्रन्थ पाया जाता दै । इनकी न्याय-विषयक बत्तीसियों मे से एक “'झन्ययोग व्यवच्छेद” है और दूसरी “योग व्यवच्छेद” है । दोनों में प्रसाद शुण संपन्न 3९-३९ श्लोक हैं । उद्यनाचाय मे कुसुमांजलि में जिस प्रकार इंश्वर की स्तुति के रूप से न्याय- शास्त्र का संग्रथन किया है; उसी तरह से इनमें भी भगवान्‌ महावीर स्वामी की स्तुत्ति के रूप में षट्- दर्शनों की मान्यताओ का विश्लेषण किया गया है । श्लोकों की रचना महाकवि कालिदास श्औौर स्वामी शकराचाय की रचना-शैली का स्मरण कराती है । दाशनिक श्लोकों में भी स्थान स्थान पर जो विनोद्‌- मय 'श देखा जाता है, उससे पता चलता है कि श्ञाचाय देमचन्द्र इससुख और प्रसन्न प्रकृति वाले होंगे । “'झन्य-योग-व्यवच्छेद” बत्तीसी पर मल्लिपेण सूरि कृत तीन हजार श्लोक प्रमाण “'स्याद्वाद मब्जरी” नामक प्रसाद शुण सपन्न भाषा में सरल, सरस और ज्ञान-व्घेक व्याख्या ग्रन्थ उपलब्ध है । इस व्याख्या ग्रन्थ से पता चलता है. कि मूल कारिका(ऐं कितनी गंभीर, विशद 'झथ बाली 'और उच्च कोटि की है । इस प्रकार हमारे चरित्र-नायक की प्रत्येक शास्त्र में झन्याहत गति दूरदर्शिता; व्यवहारज्ञता, एवं साहित्य-रचना-शक्ति को देख करके विद्वान्तों ने इन्हें “'कलिकाल-सवंज्ञ” जैसी उपाधि से विभूषित किया है । पींट्सन आादि पाश्चिमात्य विद्वानों ने तो '्ाचाये श्री को (0८८9 0 0! ट८ट्टट 'र्थात ज्ञान के महा सागर नामक जो यथा तथ्य रूप वाली उपाधि दी है; वह पूण रूपेण सत्य है । कहा जाता है कि 'ाचाय देमचन्द्र ने अपने प्रशंसनीय जीवन-काल सें लगभग डेढ़ लाख मनुष्यों को 'झ्थात्त तैतीस हजार कुटुम्बों को जैच-धर्मावलस्वी बनाये थे । छन्त में चौरासी वर्ष की छायु में 'ाजन्म 'झखड ज्रह्मचये घ्रत का' पालन करते हुए श्औौर साहित्य-प्रन्थों की रचना करते हुए सबत्त्‌ १९२६ सें गुजरात श्रान्त के ही नहीं किन्तु सम्पूर्ण भारत के साधारण तपोधन रूप इन महापुरुष का स्वगंवास हुआ । ्यापके 'झनेक शिष्य थे; जिनसें श्री रामचन्द्र छादि सात शिष्य विशेष रूप से प्रख्यात हैं । झन्त में विशेष भावनाष्ों के साथ में यही लिखना है कि 'माचाये देमचन्द्र की श्रेष्ठ झुतियाँ, प्रशस्त जीवन 'झौर जिन-शासन-सेवा यही प्रमाणित करते हैं कि छाप 'असाधोरण विद्वान, महान जिन-शासन-प्रमावक श्मौर भारत की दिव्य विभूति थे । रतनलाल संघवी छोटी सादड़ी, (राजस्थान) श्रनन्त चतु्देशी डे बिक्रमाब्द २०१६ |




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