सफल जीवन | Saphal Jiivan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन का उद श्य श्श में इताश नहीं होना चाहिए यदि हस श्ारम्भ से ही अपने को नाचीक छौर सिस्वार मास लेते हैं ठो हम घार्तव में कुछ नहीं कर सकते । हुसें यही विश्वास रखना चाहिये कि हम बढ़ेन्से- बड़ा काम करने के लिये इस प्रथ्वी पर भेजे गए हैं, हमारे हाथ में वे साधन दिये गए है कि झगर हम सावधानी से कीम लें तो उस उद्देश्य को हम सफल और सार्थक बसा सकते हैं लिसके लिये इस मेजे गये है। बगर हम छासावधानी और उपेक्षा से इन अवसरों को चले जाने देते हैं घौर काम नहीं बनाते तो हम हत्या का पाप करते हैं । इसी में रची सफकता है। बिना इस प्रकार से झशास्वित हुए, बिना इस अकार का ' छादशे सामने रखे, बिना बिजय की कामना किए यह सार्थक छौर परम उप- योगी जीवन सी निरथेक झौंर अनुपयोगी हो ज्ायगा। जिसे हम अतिविस्तृत कहते हैं बह संकुचित हो जायगा, जिसे हम पूर्ण कहते हैं. वह अपूणे हो जायगा, जिसमें से हम उत्तम से उत्तम रल्न निकालने की ाशा करते हैं बद्द मिरथेक साबित होगा ! हमारे जीवन का उद्देश्य केबल उद्र की उपासना नहीं होना चाहिए ! यह तो गौश विषय है। नीति भी यही कहती है-- काकोइपि जीवति चिराय बलिय मुक्त । समझा में नहीं झाता कि कतोने मनुष्य के साथ इसे क्यों लगा दिया । नहदीं तो उसका मुस्य उद्दश्य तो इस मानव शरीर को पूण बनाना ही है । 'झात्मप्रतिष्ठा, छात्मविकास, आात्मोत्थान, पुरुष छौर श्रकृति का पूर्ण विकास तथा उसकी समस्त शारीरिक, मानसिक और झआत्मिक शक्तियों का समुचित एवं समीचीन प्रयोग, यहीं इस जीवन का सच्चा प्रयोग और उपयोग है । इसी में हमें तल्लीन ्यौर तन्मय रहना चाहिये । क्योंकि, यस्थिन, जोवति जोवन्ति बहवः से हु जीवति । काकीडश्रपि किन्ञ कुसते चल्च्वा स्वोद्रपूरणुम ॥




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