जंजाल तथा अन्य कहानियां | Janjal Tatha Anya Kahaniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहुत मैंगानुर्चेसा घा-गालों पर सयात थे पर भोमा को म्रादो से ममता की
पदियर जगमगाहट थी 1
चह चौकी, उसने उसे प्दार से चूमा 1
“भू सदी है ४ उसने रह! !
र्रेोटी रा लो ह
रोटी ढहुत सूगी व बडी है ।'
वह मुमकराशर बोली, “तो बेटे ऐसा बर हि उसे पानी में भिगोकर जरा
नम डालवर गा से 1
उसने घपनी बारह साल वी लड़वी छिनतही में बहा, जा इसे रोटो भिंगों
कर दिला दे प्रौर फिर भाइयों को साथ लैवर भील सागने चली जाना ।'
पहा मां, जब दोनों साथ रहते हैं” भीग ज्यादा मिलती है ।'
उसने इस बात दा कोई जवाद नहीं दिपा । सहमा वह गहरे भ्वसाद से
दिर गयी 1
भोमा ने पपना मुह घोया । बालों को ठीक जिया । उसे. श्रपना सपना
फिर याद झाया । सपने के साथ वह भपने दास्तविक रूप को श्रपने भीतर देखने
लगी । एवं लड़ावू भोर खुरोट रुप ।
जब वह घर से चली तब उसे सपना फिर याद हो पध्राया । एक नगा
सपना 1
बहु दफ्तर पहुंची । उमरे इर।दे प्राज जरा भी नेक नहीं थे
जवान चपरासी ने उसे देखा श्रौर एक व्यग्य मदी मुसकान के साथ कहा,
या गयी, बरी घ्राती हो ? यहा कुछ भी हाना-जाना नहीं । सब चोर-उचकके
बैठे है” सब गुर घटाल है” साहव बिना राजी हुए कार्ड नहीं निकालेगे ।
उसने मन हो मन बद्दा कि साला मोटी गर्दनवाला गैड! ।
फिर वह तिक्त स्वर में बोली, 'गडे की श्रोलाद ?. प्रमी तक तुम्हारा
चुदचाप धमीडा सहते वाली उन लुगाइपों से पाला पड़ा है जो वेबेसी में लडती
भगड़ती नहीं है । पर में सांसभ भोमा हूं” में भूरु से नहीं दरती । पे जब ग्रमने
पर झ्ाती हू तो धच्छों-घ्रच्छों को उनकी माँ याद झा जाती है । श्राज मैं घपने
पर झायों हूं, समन ?'
भोमा तीर थी तरह निकलकर साहब के वमरे में प्रविप्ट कर गयी ।
चपरासी धरे ””श्रे”“ मरे करता पीछे भागा । सहसा भोमा के दिमाग मे सपता
घूम गया 1
उसने फटाक से दरवाजा वद दिया । झधिकरी चौका । मोगा का रोद
रूप देखकर वह घिधियाने लगा, “तू” तू भीतर कंते झा गयो है?
“मैं कई बार इस दपदर दे चर लिव[ल चुकी हू पर श्रसी तक मेरा
नाम भी दरज नहीं हुमा 1 तेरा एक-एक झादमी मुमे खा जाने की निगाह से
देवता है, भरी भरोवी की नहीं, इस शरीर वी वातें करता है, जैसे मैं धपने
जंजाल / 11
User Reviews
No Reviews | Add Yours...