कोई अजनबी नहीं | Koyi Ajanabi Nahi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाँच दोस्तो को भी उसी छोटी-सी कोठरी में सोने को कह दिया था, तो वह उठ खडी हुई थी । रामप्यारी ने नागफनी के पौधे देख रखे है । नागफनी के पत्ते अलग-अलग दिशाओ की ओर तिरदे घूमे हुए होते है । छः-छः मर्दों के बीच उस छोटी-सी कोठरी मे सोते हुए रामप्यारी ने ऐसा ही अनु- भव किया था । कोई सिरहाने सोया हुआ है, तो कोई पायताने, और कोई दाहिनी ओर सोया हुआ है, तो कोई बाँई ओर । चतुर्भुज के बीच का केन्द्रबिढ़॒ काफी छोटा होना चाहिये । रामप्यारी ने महसूस किया था कि वह किसी एक ही अष्ठभुज पुरुष के बीच में घिर गयी है, और, माततादीन चौकीदार के मंतब्य का निषेध करती हुई, वह ठीक वैसे ही भिनभिनाई थी, जैसे अष्टपाद मकड़े की पकड़ में फँसी हुई कोई मक्‍्खी शिनभिनाती है । सुगनचन्द खोमचेवाला ठीक वैसे ही हूँसा था, जेसे स्कूल की लड़कियों को दही-भल्ले खिलाते समय हूँसता है । वह कहना चाहता था कि “हरे राम, इतनी कदुदावर औरत और ऐसी इस्कूल की छोकरियो की जेसी महीन आवाज !” मगर बोला था--“मातादीन, अरे यार, इस भागवान से बोल कि इसे घबरा कर उठ खड़ा होने की जरूरत क्या है भला ? घबराना तो हम लोगों को चाहिए था ?”' रामप्यारी कहना चाहती थी, मातादीन से कि उसका जिस्म नहीं घबराता है, बल्कि उसके अत्दर की औरत जात का जी घिना रहा हैं कि ऐसे मर्दों और कुत्तो में कोई फर्क भी हो सकता हैं मगर बोली थी--*'बयो, ठाकुर ! क्या कहके बुला लाये थे तुम हमे दिल्‍ली शहर ? हमने पहले ही नहीं बोला था कि हमारे को घरवाली बनाने में अच्छे-अच्छो की ठकुरैती उतर जाती है ? तुम-जैसे मर्दों की जात तो चोट्टी औरत जात का हिया नही देख सकती ना भड़ैत ? काहे को ले भाये थे तुम हमे यहाँ, ये ही कुत्ते लोग के साथ सुलाने को ? त्थू...””




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