युधिष्टिर | Yudhishthir
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा अध्याय दर
वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि कपड़ों का एक सुंदर नगर-सा
बना हुआ है। जगह-जगह फ़ौवारे चल रहे हैं, और सुंदर
फूल-बारा बने हुए हैं। यह हृश्य देखकर पांडवों को बढ़ा
आनंद हुआ | थोड़ी देर सैर करने के बाद युधिषिर सब भाइयों
के साथ भोजन करने बेठे । उनके साथ कौरव भी जीमने बैठे ।
भोजन में अनेक प्रकार की चीजें बनाइ गई थीं । उनका स्त्राद
ले-लेकर वे लोग आपस में ,खूब प्रशंसा करने लगे । जिसे जो
चीज़ अच्छी लगती, बह दूसरे को दे देता था । इस तरह देन-
लेन में दुष्ट दुर्योधन ने विष-मिंली मिठाई थीमसेन को दे दी।
सीस को दुर्योधन पर किसी प्रकार का संदेह तो था ही नहीं,
उन्होंने वह मिठाई बड़े शौक से खा ली। यह देख दुर्योधन
सन-ही-मन खूब प्रसन्न हुआ । उसने समझा कि मेरा मतलब
सिद्ध हो गया है। अस्वु, भोजन हो जाने पर कौरवों ओर
पांडवों ने सिलकर बड़े आनंद से जल-बिहार किया ।
जल का खेल खेलते-खेलते संध्या हो गद। सबने जल से
निकल-निकलकर अपने कपड़े आर गहने पहने । परंतु जहर
के प्रमाव से भीससेन गंगा के किनारे ही बेहोश होकर पड़े रहे 1
उनको किसी प्रकार की सुघबुधघ न रही । यह बात और कोई
नहीं देख पाया, सिफ़ें दुर्योधन दही जानता था । जब उसने
देखा कि भीमसेन बिलकुल होश में नहीं हैं, तो वह उनके
पास गया और हाथ-पाँव बाँधकर उन्हें गंगा में डुबो आया |
_ बांगा के सीतर-ही-भीतर सीमसेन नागलोक में पहुँचे । वहाँ सर्प
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