कवि - नाटयम | Kavi - Natayam

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Kavi - Natayam  by राम नारायण अग्रवाल -Ram Narayan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामदास : अकबर : रामदास : झकबर : कवि-नाट्यम लटक चाल से चलते गोपाल को श्राते देखकर, उसकी तसवीर बनाई हो । अ्रापका कथन सही है, जहाँपनाह । सचमुच कुंभन दास ऐसे ही सिद्ध महाकवि हैं, जिनकी साधना की भाव-भूमि में साधक श्रौर सिद्धि घुल-मिलकर एक हो गये हैं । कुंभन दास श्रौर कृष्ण में श्रब कोई भेद नहीं रहा इसकी साक्षी स्वयं गिरिराज गोवध॑न की एक-एक दिला बन गई है, सम्राट । हमारा सौभाग्य है कि हमारे शासन-काल में ऐसे-ऐसे महाकवि श्रौर भक्त मौजूद हैं । रामदास यह साहित्य श्रौर संगीत के धनी गिरिराज से कितनी दूर रहते हैं ? गिरिराज गोवधन के निकट ही. जसुनावते गाँव के एक कच्ची स्वच्छ कुटी के बासी कंभन दास श्रपने गाँव के पास ही परासौली में कृषि करते हैं सम्रादू ! वैसे श्री नाथजी के मंदिर में कीत्तेत करना ही उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र व्यवसाय समान लिया है, जहाँपनाह । उससे जो समय बचता है, उसे ही वे परिवार के भरण-पोषण के लिए खेती में लगाते हैं । तब तो वे गृहस्थ-भक्त हैं। संसार में रह कर भी उससे दूर । हम ऐसे महापुरुष से मिलना चाहते हैं । (घण्टा बजाता है) दूत श्राता है ।




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