कबूरी | Koobri

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Koobri by राम नारायण अग्रवाल -Ram Narayan Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुबरी हती जो क्वौ कूरो उपेक्षिता सी, ताहि कवि समवे श्रनरुप करिदीनौ है च कं चरित्र की पवित्रता विचित्र मित्र ! चित्र खींच गौरव गुमान অহি दीनो है ॥ छन्द लँ विभिन्न खंड कान्यहु श्रवत कं, नव सर्ग माँहि नव रस जरि दीनौहै॥ शक-एक पद को उठाइ रस घोरि-धोरि, क्राव्य की सुधा में बोरि-बोरि धरि दीनो है ।| प्रियतम दत्त चतुर्वेदी ““चच्चनः घन्य गोपा, अमला भी धन्य हसौ कार! कवि-कलम से कीति उतकी भ्रमर श्रपरपार ॥ पर कुरूपा कबरी की कथा करुणापुं। कवि-कलम से कल तलक भी जो न थी संपूर्ण ॥। आज अपने रूप में कर भाव का স্ুক্রাহ। . बहु मुखर ब्रजभारती में हुई पहिली बार + --जीवन प्रकाश जोशी >




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