अध्यात्म - पदावली | Adhyatam - Padawali

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Adhyatam - Padawali by राजकुमार जैन - Rajkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डक चित ध्यावत, वांछित पावत, आवत मंगल, बिघन टरै; * मोहनि धूरू परी माथे चिर, सिर नावत तत्काल झरे। . जिनराज चरन मन ! मत बिसरे ॥”' चिरकालसे हमारे माथेपर जो मोहनीय कर्मकी धूल पड़ी हुई है, भगवानके चरणोंके आगे सिर झुकाते ही वह धूल झड़ जायेगी । हे मन ! जिनेन्द्र भगवानूके चरणोंका ध्यान मत भूल । मत भूल, क्योंकि ' “को जाने किहि बार काल की धार अचानक आन परे, जिनराज चरन मन ! सत बिसरे ॥”' कितने सीधे दशब्दोंमें कितनी गहरी बात, किस प्रभावपूर्ण ढंगसे कह दी हैत कितना प्रसाद है इन पंक्तियोंमें । कौन जानता है कि कालकी दुधारी किस समय अचानक ही गरदतपर आ गिरे । भविति-भावनाके अतिरिक्त प्रस्तुत पदावलीका प्राय: तीन चौथाई भाग “ऐसे आध्यात्मिक पदोंका है जिसमें व्यक्तिको आत्मज्ञान, विवेक और ._ वीतराग-अवस्था प्राप्त करनेको प्रेरित किया गया है । यह उपदेश अवश्य है, पर ऐसा उपदेश जिसके पीछे कवि योंका अनुभूत जीवन-दर्शन है । इन पदोंकी प्रेरणाका प्रभाव इस बातमें है कि इनके कवि अडिंग विश्वास और श्रद्धासे स्वयं प्रेरित हैं । किस-किस ढंगसे, किन-किन तरकोंसे, कित-कित सम्बन्धोंसे - दुलारकर, समझाकर, 'छताड़कर, लानत भेजकर, सब तरह- से - वे श्रोताके हृदयमें अध्यात्म-तत््व जगाना चाहते हैं । कितनी करुणा है इन कवियोंके उरमें । कैसी मिश्री-सी मीठी और कैसी तीर-सी सीधी हैं इनकी बातें । और आत्मीयता इतनी कि जैसे सारा पद आपके छिए, केवछ आपके लिए, रचा गया हो । अनेक पदोंकी प्रथम पंक्तिमें ही यह मनुहार और दुलार देखिए : “मान ले या सिख मेरी ।” “छाॉड़ि दे या बुधि मोरी।” ६ अध्यात्म-पदावली ए फ




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