अध्यात्म पदावली | Adhyatma-padawali

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Adhyatma-padawali by राजकुमार जैन - Rajkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ अध्यात्म-पदावली को जाने किहलि बार काल की धार अचानक आन परे , जिन राज चरन मन ¡ लतं बिसर ॥ कितने सीधे शब्दोंमें कितनी गहरी बात, किस प्रभावपूर्ण ढंगसे कह दी है) कितना प्रसाद है इन पंक्तियोमें। (कौन जानता है कि कालका दुधारा किसर समय अचानक ही गदेन पर आ गिरे! भक्ति-भावनाके अतिरिक्त प्रस्तुत पदावलीका प्रायः तीन चौथाईं भाग एसे आध्यात्मिक पदोका है जिसमें व्यक्तिको आत्मज्ञान, विवेक और वीतराग-अवस्था प्राप्त करनेको प्रेरित किया गया है। यह उपदेश अवश्य है, पर ऐसा उपदेश जिसके पीछे कवियोंका अनुभूत जीवन-दर्शन है। इन पदोंकी प्रेरणाका प्रभाव इस बातमें है कि इनके कवि अडिग विश्वास और श्रद्धासे स्वयं प्रेरित हें । किस-किस ढंगसे, किन-किन तकसि, किन-किन सम्बोधनोंसे--दुलार कर, समझाकर, लछताड़कर, लानत भेजकर, सब तरहसे--वे श्रोताके हृदयमें अध्यात्म-तत्त्व जगाना चाहते ह । कितनी करणा है इन कवियोके उरमें। कैसी मिश्री-सी मीठी ओौर कंसी तीर-सी सीधी ह इनकी बातें ।! ओर आत्मीयता इतनी कि जसे सारा पद आपके लिए, केवल आप के लिए, रचा गया हौ । अनेक पदोकी प्रथम पंवितमे ही यहं मनुहार ओर दुलार देखिये -- मान ले या सिख मेरी। छांडि दे था बुधि भोरी। रे मन ! कर सदा संतोष । ऐसा काज़ न करता हो। विपत्ति में धर धीर रे नर! देखो भाई ! महा विकल संसार । देखिए, यह खीज और झुंझलाहट, छेकिन कितनी आत्मीय :-- तोहि समझायो सो सो बार । तु तो समञ्च समझ रे भाई | चेतन तोहि न नेकः संभार)




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