मीराँ - जीवनी और काव्य | Meeran - Jeevani Aur Kavya
श्रेणी : काव्य / Poetry, जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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No Information available about महावीर सिंह गहलोत - Mahaveer Singh Gahlot
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जी
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श्७ नाम
सम्भव है इन शब्दों से कुछ स्पष्ट हो जायगा--'सुक्त मन चाला;
कृपालु शीलवान पुरुप ।”
चहुत सम्भव तो यही जान पढ़ता हैं कि मीराँ के माता-
पिता ने श्यपनी प्रथम सन्तान को जीवन-चिंतामणि जानकर
अपने सुखों में उसे अति उच्च पद दिया और उसके शील, गुण
नम्रता झादि को लखकर यथाशुणाुसार उसे मीर (श्रॉप्ठ ) दी
साना और वहीं हमारी मीराँवाई अपने नाम को भक्ति-क्ष त्र
और काव्य-चा घर में, स्वणा कित करने में सफल यही सीधा-
सादा सरल रहस्य, 'मीरों' नाम में निहित जान पड़ता है ।
जोधपुर के संस्थापक राठोड़ राव जोधाजी के चतुथ
पुत्र राव दूदाजी ने अपने अधिकृत भूभाग में संवत् १५१६
वि० में मेड़ता नामक नगर वसाया । मेड़ता
चंश नगर, जोधपुर से ३५ सील की दूरी पर उत्तर
पूर्व दिशा में है # राव दूदाजी के ज्येप्ठ पुत्र
वीरमसी ( या वीरमदेव ). संवत, १५३४ से १६०२ वि०
तक जीवित रहे । इनके पुत्र का नाम जयमल था । राच दूदाजी
के चतुथे पुत्र का नाम रतनसी ( या रवर्सिदद ) था। रतनसी
( जन्म लगभग १४४० वि० और सृत्यु संवत १५८४ चि० )
को जागीर के रूप में १२ गाँव सिले थे। इन्हीं गाँवों में से एक
कुइकी गाँव (चोकड़ी नाम चू टिपूण) हू; जहाँ पर मीर्सवाई
का जस्म हुआ था । यह वंश “मेड़तिया' राठाड़ कददलाया ।क
'मेड़ते से जो सीधा माग जोधपुर नगर के प्राचीर तक श्राता है, वहाँ
प्राचीर में एक वड़ा गोपुर ( द्वार ) है, जिसका नाम 'मेड़तिया द्वार है ।
ऋमीरों मेड़ते की थी । इस हेतु परम्परानुसार चह श्रपनी ससुराल में
दपने नाम ते संचोधित न होकर, 'मिड़तणी रानी”, नाम से प्रतिद्ध हुई।
चर
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