मीराँ - जीवनी और काव्य | Meeran - Jeevani Aur Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जी ् श्७ नाम सम्भव है इन शब्दों से कुछ स्पष्ट हो जायगा--'सुक्त मन चाला; कृपालु शीलवान पुरुप ।” चहुत सम्भव तो यही जान पढ़ता हैं कि मीराँ के माता- पिता ने श्यपनी प्रथम सन्तान को जीवन-चिंतामणि जानकर अपने सुखों में उसे अति उच्च पद दिया और उसके शील, गुण नम्रता झादि को लखकर यथाशुणाुसार उसे मीर (श्रॉप्ठ ) दी साना और वहीं हमारी मीराँवाई अपने नाम को भक्ति-क्ष त्र और काव्य-चा घर में, स्वणा कित करने में सफल यही सीधा- सादा सरल रहस्य, 'मीरों' नाम में निहित जान पड़ता है । जोधपुर के संस्थापक राठोड़ राव जोधाजी के चतुथ पुत्र राव दूदाजी ने अपने अधिकृत भूभाग में संवत्‌ १५१६ वि० में मेड़ता नामक नगर वसाया । मेड़ता चंश नगर, जोधपुर से ३५ सील की दूरी पर उत्तर पूर्व दिशा में है # राव दूदाजी के ज्येप्ठ पुत्र वीरमसी ( या वीरमदेव ). संवत, १५३४ से १६०२ वि० तक जीवित रहे । इनके पुत्र का नाम जयमल था । राच दूदाजी के चतुथे पुत्र का नाम रतनसी ( या रवर्सिदद ) था। रतनसी ( जन्म लगभग १४४० वि० और सृत्यु संवत १५८४ चि० ) को जागीर के रूप में १२ गाँव सिले थे। इन्हीं गाँवों में से एक कुइकी गाँव (चोकड़ी नाम चू टिपूण) हू; जहाँ पर मीर्सवाई का जस्म हुआ था । यह वंश “मेड़तिया' राठाड़ कददलाया ।क 'मेड़ते से जो सीधा माग जोधपुर नगर के प्राचीर तक श्राता है, वहाँ प्राचीर में एक वड़ा गोपुर ( द्वार ) है, जिसका नाम 'मेड़तिया द्वार है । ऋमीरों मेड़ते की थी । इस हेतु परम्परानुसार चह श्रपनी ससुराल में दपने नाम ते संचोधित न होकर, 'मिड़तणी रानी”, नाम से प्रतिद्ध हुई। चर




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