कवि रत्नाकर और उनका उद्धव शतक | Kavi Ratnakar aur Unka Uddhav Shatak

Kavi Ratnakar aur Unka Uddhav Shatak by बाबु जगन्नाथदास - Babu Jagannathdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १२ 1 की बायु तथा भूमि पर कृष्णानुराग चढ़ा हुआ देः तथा उद्धव द्वारा लाई हुई पत्रिका उद्दीपन के रूप में लिए जाते हैँ। प्रेम और भक्ति से परिप्लावत क्ष्ण गोपियों, और आगे चल भक्ति और प्रेम रस में सिचित उद्धव में पुलकावली, अश्रु श्रवाह, उच्छवास, कंठावरोध, प्रस्थद , वैवण्य' कम्प, शेशल्य, मोह, प्रमाद आदि अनेक अलुभाव यथोचित रूप से यथास्थाम प्रदर्शित किये गये हैं। कहीं कह्दीं तो नेक अनुभावो का सुष्ठ संगुफन बड़ी ही चातुरी और रुचिरता से किया गया है। लुभावों का सूदम निरीक्षण एवं गुफित चित्रण 'उद्धवशतकी की ४) विशेषता है | उद्धबशतक को दृष्टि में रखते हुए यह निसंकोच कहा जा सकता कि अनुभावों की सफल योजना करने में हिन्दी के वहुत ही कम कंपि रक्नाकर से आगे वद्‌ पाये होंगे। एक दो उदाहरण ध्यातव्य हं :-- (१) सुन २ उव की अक्‌ कानी मान कोऊ थहरानी, कोऊ গ্রানিছি প্রিহালী ই कहे रत्नाकर रिसानी, वररानी कोड कोऊ विलखानी विकलानी विथकानी है | कोऊ सेद्साती--कोऊ अरि देगपानी रहीं कोड धूमि घूमि परी भूमि सुरभानी हे। कोडस्याम २ के वहकि चिकलानी कोड कोमत करेजो थामि समि सुखानी है । _ उद्धव की ज्ञान गाथा सुनकर गोपियों की जो दशा हुईं उसका एेसा मार्मिक चित्रण रनाकर जी ने उपस्थित किया है । कुछ गोपियाँ तो सुनकर स्तंभित ही रह गई। उन्हें स्वप्न में भी यह आशा नहीं थी कि कृष्ण ऐसा संदेशा भेजेंगे । कोई अन्ठसंट ही वकने लगी । है 225 ॐ ४




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