शादी या ढकोसला | Shadi Ya Dhakosla
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समभ सकती हूं; पर जो रिस्ता समभक में नहीं श्राता वह है
पति-पत्नी का रिस््ता ! ”””'सुन रहे हो ?
कमल
_ पढ़े जाशो ।
ते खन्ना
*“ पिता-पुत्र का रियता मैं समझ सकती हूं वयोंकि वह
स्वाभाविक है । मां श्रीर बेटे का रिइ्ता, वहिन-भाई का, गुरु-
दिप्य का रिश्ता भी समक सकती हूं, क्योंकि थे सब स्वा-
भाविक रिश्ते हैं; पर पति-पत्नी का रिद्ता कृत्रिम है,
घनावटी है, जिसे समाज ने श्रपनी कामारिन शांत करने के
लिए जरूरी करार दिया है । इसीलिए उसने शादी-्याह की
रस्म को, जो मेरे ख्याल में बिलकुल ढंकोसला है, धर्म का
रुप दिया है, श्रीर हम सबकी नज़रों में इस प्रथा के प्रति, ं
श्रादर-भाव पैदा करने की कोशिश की है। मैं फिर कहती हूं,
यह शादी नहीं, ढकोसला है ! कया पुरुष श्रौर स्त्री के श्रनेक'
रिदतों में कोई कमी थी जो पति श्रौर पत्नी का रिश्ता भी
ईजाद किया गया ? गया वहिन-भाई, मां-वेटे के रिश्ते ही
काफी न थे जो पति श्रौर पत्नी के रिद्ते की जरूरत पड़ी ?
कमल
(ठद्दाका मारकर हसता हुमा)
तो इसके मानी हुए कि मिस श्राश्य मित्रा, एम० ए०,/
भी० टी० को झ्रभी तक यह भी पता नही कि
खन्ना
कि झंडे से मुर्गी वनी या मुर्गी से झंडा ! (कमल
है पोर खन्ना भी 1) यार तिवारी ! यह भाशा मित्रा कया
दादी के खिलाफ है ?
दे
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