शादी या ढकोसला | Shadi Ya Dhakosla

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Shadi Ya Dhakosla by किशोर साहू - Kishor sahoo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समभ सकती हूं; पर जो रिस्ता समभक में नहीं श्राता वह है पति-पत्नी का रिस्‍्ता ! ”””'सुन रहे हो ? कमल _ पढ़े जाशो । ते खन्ना *“ पिता-पुत्र का रियता मैं समझ सकती हूं वयोंकि वह स्वाभाविक है । मां श्रीर बेटे का रिइ्ता, वहिन-भाई का, गुरु- दिप्य का रिश्ता भी समक सकती हूं, क्योंकि थे सब स्वा- भाविक रिश्ते हैं; पर पति-पत्नी का रिद्ता कृत्रिम है, घनावटी है, जिसे समाज ने श्रपनी कामारिन शांत करने के लिए जरूरी करार दिया है । इसीलिए उसने शादी-्याह की रस्म को, जो मेरे ख्याल में बिलकुल ढंकोसला है, धर्म का रुप दिया है, श्रीर हम सबकी नज़रों में इस प्रथा के प्रति, ं श्रादर-भाव पैदा करने की कोशिश की है। मैं फिर कहती हूं, यह शादी नहीं, ढकोसला है ! कया पुरुष श्रौर स्त्री के श्रनेक' रिदतों में कोई कमी थी जो पति श्रौर पत्नी का रिश्ता भी ईजाद किया गया ? गया वहिन-भाई, मां-वेटे के रिश्ते ही काफी न थे जो पति श्रौर पत्नी के रिद्ते की जरूरत पड़ी ? कमल (ठद्दाका मारकर हसता हुमा) तो इसके मानी हुए कि मिस श्राश्य मित्रा, एम० ए०,/ भी० टी० को झ्रभी तक यह भी पता नही कि खन्ना कि झंडे से मुर्गी वनी या मुर्गी से झंडा ! (कमल है पोर खन्ना भी 1) यार तिवारी ! यह भाशा मित्रा कया दादी के खिलाफ है ? दे




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