राजस्थानी भाषा और साहित्य | Rajasthaani Bhaashaa Aur Saahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम प्रकरण डे विक्रम की छठी - सातवीं शताब्दी में लेकर दशवी-ग्यारहवी शताब्दी तक इन अपभ्रशों का देश के भिन्न-मिन्न भागों से प्रचार रहा । परन्वु बाठ में इनकी भी वही गति हुई जा पूर्वोक्त प्राकृता। की हुई थी । अर्थात्‌ इनमें भी साहित्य-गचना होने लगी और विद्वानों ने टन्ह भी व्याकरण के अस्वाभाविक नियमों से बॉँघना शुरू कर दिया जिससे इनके दारुप हा गये । एक रूप तो वह था जिसमें साहित्य-ग्चना हवाती थी शऔर दूसरा बह रूप जिसका सर्वसाधारण में प्रचार था | प्रथम रूप तो व्याकरण के नियमों में बेंधकर स्थिर हो गया पर दूसरा बराबर विकसित, होता रहा और जिस तरह प्राकृतें पहले अअपश्रशों में परिवर्तित हो गईं थी उसी तरह अपभ्रश भी आधुनिक झायभाषाओओं मे रूपान्तरित हो गये । पूर्व-लिस्वित सत्ताइंस श्रपम्रशो में से नागर श्रपश्रश का प्रचार-हेत्र डा> ग्रियसंन ने गुजरात-पश्चिमी राजस्थान होना झनुमानित किया है । इसके विपरीत डा० सुनीतिकुमार चटजी ने इस क्षेत्र की श्रपभ्रश को सौराष्ट्री झप- भ्रश नाम दिया है * । परत ये ढोनों दी नाम झस्पष्ट हैं। नागर श्पभ्रश से झभिपधाय नागर जाति की श्रपश्रश से है या नागरिकों की श्रपभ्रंश से, यह साफ नहीं है । श्रौर सौराष्ट्री थ्पश्रश नाम कुछ सकीण है । इससे इसका दायरा केवल सौराष्ट्र (काठियावाड़) ही तक सीसित होना सूचित होता है । हमारे खयाल से श्री कन्हेयालाल-माणिकलाल म॒शी का रखा हुआ नाम गुजरी अपभ्रश श्र्थात_ गुजर देश की झ्पभश्रश अधिक साथक है3 | इस नाम से इसके वास्तविक क्षेत्र का अंदाजा हो जाता है | क्योकि प्राचीन समय में गुजर देश मे झ्राधघुनिक गुजरात आर आधुनिक राजस्थान दोनों के कुछ अंश साम्मिलित थे जहाँ यह वाली जाती थी । इसी शुजरी श्वपश्रश से राज- स्थानी भाषा की उत्पत्ति हुई जिसका एक रूप आगे जाकर डिंगल नाम से विख्यात हुआ । वा पलट प हवा सशाादरलगाय हर व... पहददण, गया कद पका बजाया पाप का मनन बनना... बन नया साण्यामणयााान लक व कल २ उदयपुर बिद्यापीठ के तत््ाबधान में रा जरधानो भाषा पर दिया गधा शाषश | ३ अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के « तैँतीमवे अधिवेथन । उदयपुर ) का विवरण, पर०९




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