अथर्ववेदभाष्यम् सप्तदशं काण्डम् | Atharvvedbhashyam Bhag 7
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
35
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सू० ९ [ ५९२३ ].... सप्तदशं कायडसू ॥ ९७ ॥। ( दे, २७
तेरे हो [ मन्त्र ६10 १३ #
सावाय--परमात्या ने पृथिवी झादि पाँच तसवोँ में झनस्त उपकार शक्ति
दी है, सचुष्य उन तत्वों के विज्ञान से उपकार लेकर सुख प्राप्त करे ॥ १३॥
त्वासिन्ट्र ब्रह्मणा वधयन्त: सत्च नि पदक षयो नाधसाना-
स्तवंद विष्णों बहा घोयाशि । त्वं न पूर्णोहि पशशिघधि,-
श्वरूप: सधघायाँ सा थेहि परमे व्यासन् ॥ ९४ ॥
त्वासू । इन्द्र । ब्रह्म॑णा । घधयन्त!: । सृत्चसू । नि । से.दः
ऋषय: । नाधसाना: । तव । इतु । विष्णो इति । बह था
वोयाखि ॥ त्वसू । न । पणोक्षि, । पश-सिः । विश्व-रूप:
स-घायांसू । सा । धेहि. । परुसे । घि-सासन ॥ ९१४ ॥
माषाथ--(इन्द ) हे इन्द्र ! [ परम ऐश्व्य वाले ज्गदीश्वर ] ( घ्रह्म-
णा ) बढ़े हुये बेद्ज्ञान से ( त्वांमू ) तुझे ( वर्घयस्तः ) बढ़ाते हुए, (नाघमामाः )
[ मोच सुख ] मांगते हुये ( ऋषयः ) ऋषि [ चेद्ज्ञाता ] लोग ( सत्नम् ) बैठक
[चायज्ञ] में ( निषेदुः ) बेठे हैं, (विष्णो) हे विष्खु ! [ सर्व व्यापक परमेश्वर 1]
(तब इत् ) तेरे ही [ मल्त्र द] ॥ १४ ॥
भावाथ--उजैसे ऋषि लोग चेद ज्ञान द्वारा जगदीश्वर की मदिमा के
घन से उन्नति करके संसार को सुख पहुंचाते हें, वैसे ही सब मजुष्य पररुपर
उपकार कर ॥ १४ ॥
व्व॑ ततं त्व॑पय ष्युत्स सहस्त्रधारं विदय स्वविंदूं. तवदू
ब्याप्ततचनसि ( तया ) (नः ) झअझस्मस्यमू ( तस्वा ) उपकारशक्त्या ( शम )
सुखमू ( यच्छ ) देदि । शन्यत् पूबंवतू ॥
१४--( त्वामू ) परमार्मानम (इन्द्र ) ( ब्रह्मणा ) प्रवूद्धेस वेद्शानेन
* (चथघंयन्तः ) उन्नयन्तः । स्तुवन्त इत्यथं: (खत्म) पटल विशरणणत्यव सादनेषु-
त्रल्ू । स्थानम् । यशम् ( निषेट्टः ) निषणणा नियमेन स्थिता बभूवुः ( प्षयः )
चेद्बेत्तार+ ( नाघमाना। ) मोक्ष थाच माना । झन्यत् पू्वंचत् ॥
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