आधुनिक भारत का दलित आंदोलन | Aadhunik Bharat Ka Dalit Andolan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
59.61 MB
कुल पष्ठ :
407
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आर. चंद्रा - R. Chandra
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कन्हैयालाल चंचरीक - Kanhaiyalal Chancharik
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)2 ए आधुनिक भारत का दलित आंदोलन
से माना जाता है। इस सभ्यता के उदय के साथ-साथ बर्बर आचरण की सभ्यता मिटी |
लेकिन यह सब हजारों साल में हुआ। सामाजिक परिवर्तन इतना आसान नहीं था। बर्बर
युग से सभ्यता के आदिम युग तक पहुंचने में आदमी आदमी के मध्य तथा मनुष्यों और
पशुओं के मध्य भीषण संघर्ष हुए।
समझा जाता है कि भारत के सर्वाधिक प्राचीन निवासी पुरापाबाणयुगीन आदिम
सभ्यता के लोग थे। जो पेड़ों और प्राकृतिक खोहों में रहते थे। धीरे-धीरे. उन्होंने नदियों
के तट पर पेड़ों के नीचे अपने निवास बनाए। उन्होंने वन्य पशुओं के मांस को पकाना
सीखा। उनकी जिन्दगी संगठित नहीं थी।
संस्कृति के पश्चात् मध्यपराकाण संस्कृति का विकास हुआ। मध्यपाषाण
सस्क्ति के लोग शिकार करके जीवन निर्वाह करते थे। शिकार के साथ-साथ खाने के
लिए मछली पकड़ते थे। जंगली फल, कंद-मूल खाकर रहते थे। डॉ. आर.सी. मजूमदार
क॑ अनुसार उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाना सीख लिया था। यह एक बड़ी उपलब्धि थी।
उनका जीवन कठोर और संघर्षपूर्ण था ।
मध्यपाषाण संस्कृति के बाद नवपाषाण संस्कृति का उदय हुआ। इस सभ्यता की
मानव जाति ने पत्तियों से बदन ढकना सीखा। पत्थर के नुकीले हथियार बनाए। सूखी
घास और पत्तियों आदि से झोंपड़े बनाए । आग की खोज की और खाना पकाना सीखा ।
उन्होंने आत्माओं, वृक्षों की पूजा करना प्रारंभ किया और पशु बलि प्रारंभ को । आदिम
मूल भारतवासियों की नवपाशाण संस्कृति बड़ी व्यापक थी। पर्याप्त साक्ष्य के अभाव में
इस आदिम सभ्यता का सही चित्रण संभव नहीं है ।
ताम्र पाघाणयुगीन संस्कृति के लोगों ने पत्थर के हथियार और बर्तन बनाए और
धीरे-धीरे ताम्र और कांस्य का प्रयोग सीखा। शिकार और मछली पकड़ने के साथ-साथ
वे आदिम प्रकार की खेती करना भी जानते थे। उन्होंने पालतू जानवरों के बारे में दक्षता
हासिल की । उन्होंने मातृशक्ति (मातृदेवी) की पूजा प्रारंभ की । शवों को जलाने या दफनाने
की प्रक्रिया विकसित की । एक प्रकार से यह मातृसत्तात्क सभ्यता थी।
द्रविड़ों ने, जैसा कि समाज वैज्ञानिकों का विश्वास है, सुदूर अतीत में समाज विकास
की एक भिन्न विकसित स्थिति को देखा । भारत के प्राचीन सभ्यता के इतिहास में उनकी
अलग संस्कृति थी जो सस्क्ति; सस्क्ति और नवपाणण संस्कृति
से सर्वधा भिन्न थी और अधिक विकसित थी ।
द्रविड खेती करने और पशुपालन से परिचित थे । वे प्राचीनतम लोग थे जो सिंचाई
के लिए नदियों पर बांध बनाना जानते थे। वे भवन निर्माण और किलेबंदी. जानते थे ।
यह भी संभव हैं कि वे “ग्राम्य प्रज़ातंत्र' के निर्माता रहे हों। जिसका संचालन आदिम
मुखियाओं द्वारा होता हो, जैसा कि आज भी आदिवासी समाज में मिलता है। यह निश्चय
ही मातृसत्तात्मक समाज रहा होगा । द्रविड़ परंपरा में अपने बच्चों को लेकर मां एक सुनिश्चित
और विकासशील समाज का 'शक्ति केंद्र थी । जब तक जाति व्यवस्था या समाज विभाजन
नहीं हुआ था पुरुष शिकार करने या मछली पकड़ने के लिए अपने झोंपड़ों से निकलते
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