अध्यक्ष कौन हों | Adhyaksh Kaun Ho

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Adhyaksh Kaun Ho by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा चल बचा ८८-८८. ९ “यह एवरी बुलाड ही हूं।” पिल्वरने अत्यन्त गंभीरताके साथ कहा । जूलियस स्टीगलके ओठोंसे आह निकल पड़ी । डोलेपर पड़ा हुआ शरीर कम्बलसे ढँक दिया गया था; और पिलल्‍्चर घूमकर सीधे तनकर खड़ा हुआ और अपनी आँखें सिकोड़कर बोला-“वह मर गया!” जूलियस स्टीगल यों ही बूढ़ा था । उस समय वहू और भी बूढ़ा, स्तब्ध और एकाग्र होकर यह दृश्य देख रहा था -“अभी एक क्षण पहले ही तुम कह रहे थे न कि यदि उसे कुछ हो जाय तो ? ”” पिल्चर उसके पास से होता हुआ झपटकर निकल गया और मेजपर रखे हुए टेलीफोनको खटखटाने लगा -'“मै श्री पिल्चर । कासवेल एण्ड कम्पनीसे मिलाओ ।” वह चोंगे पर बोला । पर झट उसके मनमें एक नयी बात कौंघ गयी । . . . . जॉर्ज कासेवल बहुत पूछताछ करेगा. . . वह तो ट्रेडवे का डाइ- रेक्टर है। उसने आदेश दिया-“ठहरो ! स्लेड एण्ड फिंचसे मिलाओ । मिस्टर विन- गेटसे ।” उसने टेलीफोन का चोंगा हाथसे ढँककर कहा-“इस घटनासे जो लाभ उठाया जा सके उसे छोड़ना, नहीं चाहिए ।'' वह बूढ़ेके उन झुके हुए कंधों के पीछे से बोल रहा था, जो खिड़कीका प्रकाश न पड़नेके कारण काले पड़ गये थे । भोंपु का स्वर धीरे-धीरे मन्द पड़ता हुआ अन्तमें सड़कके कोलाहलमें पुर्णत: विलीज्ञ हो गया । फोन सिल गया-“विनगेट ? मैं हूँ बूस पिल्चर । यह बात ठीक से समझ लो।” उसने झटसे अपनी कलाई-घड़ी पर दृष्टि डाली। “शेयर बाजार की घंटी बजनेमें अब कुल इक्कीस मिनट रह गये हैं। ट्रेडवेके कॉमन शेयर बेचने प्रारंभ कर दो। बाजार के बंद होनेंसे पहले जितने बेंच सको, बेच डालो । क्या ? मैने कहा कि जितने निकाल सको-निकाल दो । और इसके लिए मेरे कार्यालयमें मुझे फौरन सूचना देना ।' कक्ष की शान्ति में चोंगा रखनेकी ठनुक सुनाई दी । स्टीगल उसके सामने आ खड़ा हुआ था । उसका मुँह सफेद पड़ गया था और वह ज्यों-ज्यों अपने मोटे-मोटे ओठ गीले कर रहा था-“तुम.'. . क्या तुम समझते हो कि. . . ?”” “जब प्रात:काल लोगों को ज्ञात होगा कि ऐवरी बुला संसारसे कूच कर गया है तो दोयरोंका भाव दस अंश गिर जायगा ।” उसने फिर घड़ीकी ओर




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