रत्ना की बात | Ratnaa Ki Baat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रत्ना की बात  - Ratnaa Ki Baat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangeya Raghav

Add Infomation AboutRangeya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
न्>्ड्ैन पावन ा+ सनी भट्ट नी # ० ऊर चना ना गा भा भाभी पा नह ही बाधक नशा भटाकट हे जा वाल यान का का का या का कक मा प्यद्दी में भी सोचता हूं । इतने बड़े महात्मा को ही जब ऐसा कष्ट मिल रहा है, तो हम जैसों का तो जाने कया होगा !” कहते-कहते वह सिद्दर उठा । जैसे सारा जीवन फिर श्राँखों के सामने नाच गया हो । 'कोई नहीं जानता ।! उसने फिर कहा । 'फिर यद्दी एक जीवन तो नहीं हे नारायण !? नारायण ने सिर हिलाया जेसे बह जानता था । पूछुने वाले ने जैसे श्रपने श्रापसे कहा : यद्दी एक होता तो संसार इतना विचित्र क्यों होता १ महात्मा ठहरे वे । नारायण के नेत्र फड़के । “उन्होंने पाप नहीं किया ।” उसने कहा । “पाप ! राम राम !” दूसरे ने कहा : “श्रे उस जेसा पहुँचा हुश्रा मददात्मा अगर पाप करेगा तो शेष श्रोर कर्छुप दोनों ही इस धरती को नहीं संभाल सकेंगे नारायण । ट्रबने के लिये नीचे जाने की जरूरत नहीं होगी, उल्टे रसातल ही ऊपर उठ श्रायेगा श्रौर कलि से ड्रबी हुई धरती को सदा के लिये निगल लायेगा । दोनों के नेत्रों में भयात्त छाया डोलने लगी । नारायण कुछ कह नहीं सका क्योंकि पहले जनम के बारे में वद कुछ जानता नहीं था । कोई नहीं बता सकता था कि पूव जन्म में कौन कया था ? यह्द जो श्रचानक समभा में न श्राने वाले कष्ट थे, यह जो श्राँखों देखते हुए म्लेच्छों की उख्नति दो रही थी, यह जो भले लोग कष्ट पा रहे थे, बुरे लोगों का वैभव बढ़ रहा था, यह सब जो समभ में नहीं श्राता था, यदि पूव जन्म दी इस सबका कारण न था तो श्रौर क्या दो सकता था पूव जन्म !! जन्मजन्मांतर का दारुण चक्र ! मृत्यु के समीप श्ाकर यातना के बारे में मनुष्य का चिंतन !! नारायण क्या कहता उसका छदय दूक-द्क दो रद था । वह श्रपने आपको छोटा सा समझता ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now