मग्न मन्दिर | Magn Mandir

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Magn Mandir by अनन्त गोपाल शेवड़े - Anant Gopal Shevade

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अनन्त गोपाल शेवड़े - Anant Gopal Shevade

Add Infomation AboutAnant Gopal Shevade

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्६ भरन मन्दिर क्ररता श्रौर बबंरता को, यम-यन्त्रणाझ्ो को भूलने की इच्दया करने लगे । आखिर जब हम स्वतन्त्र हो ही रहे हे तो पुरानी कटुताश्रो को दिल मे समाए रखने मे क्या बुद्धिमानी है * भूलो श्ौर माफ करो तथा अपने इतिहास का नया पन्ना खोलो, यही श्रेयस्कर है । श्रौर इस वातावरण मे भारत भ्ौर ब्रिटेन की सच्ची मंत्री का नया अध्याय प्रारम्भ हुभ्रा । दुनिया ने दातो तले उगली दबाकर इस श्रदूभूत क्रान्ति का अवलोकन किया । सत्ता के हस्तातरण की क्रिया भ्रत्यन्त तेजी के साथ संपन्न कर दी गई । '.. स्वातन्त्रय सूयें को एक ही ग्रहण लगा, हिन्दू-मस्लिम सघप का । अन्त तक दोनो में एकता प्रस्थापित नहीं हो सकी । घृणा भझ्ौर विद्वेष का भूत दिल श्रोर दिमाग पर सवार था । उसके सामने भीतर बेठने वाली मनुप्यता दव गई, उसकी आ्रावाज क्षीण हो गई । सभी दलों ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि भारत को खण्डित करना होगा, श्रखण्ड भारत नहीं बन सकता । एक राष्ट्र हो या दो राष्ट, अग्रेज रुकने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए भारत का विभाजन कर वे दोनों के हाथ मे सावंभौम सत्ता सौपकर चलते बने । भारत खण्डित तो हुआ, विभाजन की विभीपिका से अभिवप्त भी हुआ, पर धन्य हो उठा । इतना बडा भूमि-खण्ड कभी एक भकण्डे के नीचे इस देख के पुरातन इतिहास मे भी समाविष्ट नही हुझा था । भारतीय जनता श्रानन्द विभोर हो उठी । खुशी के मारे नाच' उठी, पागल हो गई। उसी वातावरण मे आई झगस्त सन्‌ १९४७ की १४-१४ की मध्यराधि, जप गवर्नेमेट हाउस के समारोह मे सत्ता-हुस्तास्तरण का कार्य सम्पन्न हुआ । इसके पहले भी पुरणचन्द्र जोथी' का मरन्विमण्डल य्धिकाररूढ था, पर बह स्वतन्त्र भारत के प्रदेश का मन्त्रिमण्डल नहीं था । इसलिए जातते के लिए उस मस्यिमष्यल ने त्यागपत्र दिया, झौर फिर दुबारा स्वतन्त्र भारत के अ्म्तर्गत उस प्रदेश के प्ररम सस्तिमण्डल के रूप में शपथ ग्रहण की । पूरणचन्द्र श्रपने इस पूर्व गौरव को देखकर गदुगद हो गए । सारी जनता उन्हें सर-पझ्राखों लेकर धूमा करती 1 स्वतन्त्रता की कल्पना उनके व्यक्तित्व में साकार हो उठी । भारत की जनता स्वभाव से वीर-पूजक है, व्यक्ति-पुजक है। किसी न किसी व्यक्ति को श्रपने स्वप्नों आर श्रादर्दों का प्रतीक बनाकर वह उसकी झ्रम्यर्थना करती है । इस शद्धा-भावना मे फिर वह उसके दुर्गणो या कमज़ोरियो का विस्मरण कर देती है । प्रेम की तरह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now